हिन्दू धर्म और प्रकृत्ति के बीच एक ऐसा संबंध है जिसे किसी भी रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। प्रकृत्ति की हर चीज चाहे वो मेघ हो या बारिश, चांद-सूरज हो या नदियां… मनुष्य ने सभी के साथ एक रिश्ता कायम किया हुआ है जो बेहद अलौकिक है।
हमारे पुराणों में भी प्रकृत्ति के संबंध में हर चीज को देवी-देवताओं के साथ जोड़ा गया है। नदियों की बात करें तो गंगा जिसे भागीरथी भी कहा जाता है, के विषय में यह मान्यता है कि उसे भागीरथ नामक राजा स्वर्ग से सीधा धरती पर लाए थे।
गंगा का वेग बहुत तेज था, जिससे समस्त धरती का विनाश हो सकता था, इसलिए भगवान शंकर ने स्वयं उसे अपनी जटाओं से बांध लिया था।
यह तो हुई गंगा के धरती पर अवतरण की कहानी, अगर हम सामान्य मनुष्य जीवन में इसके महत्व की बात करें तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि गंगा की पावन धाराओं के बिना हमारा जीवन और मृत्यु दोनों ही अधूरे हैं।
मनुष्य के जीवन का कोई भी संस्कार गंगा के जल के बिना अधूरा है, दुनिया में अगर सबसे पवित्र कुछ है तो वो भी गंगाजल ही है। मृत्यु शैया पर अपनी अंतिम सांसें गिन रहे व्यक्ति के लिए गंगा का जल मोक्ष का द्वार खोल देता है, उसका एक घूंट मनुष्य को उसके पाप कर्मों से मुक्ति दिलवा सकता है।
यह भी माना जाता है कि मृत्यु के बाद मनुष्य की चिता की राख को गंगा में प्रवाहित ना किया जाए तो उसकी आत्मा इस भूलोक पर तड़पती रह जाती है।
लेकिन क्या हो अगर यह गंगा पूरी तरह सूख जाए, धरती को छोड़कर वापस स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर जाए? अगर ऐसा हुआ तो क्या वो तीर्थस्थल जो गंगा के तट पर बसे हैं उनका कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाएगा?
जी हां, ऐसा संभव है क्योंकि जिस गति से प्रदूषण बढ़ रहा है वह गंगा के जल को दिन-प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्रा में अपवित्र करता जा रहा है और पुराणों के अनुसार गंगा स्वर्ग की नदी है उसे अपवित्र करने या उसके साथ जरा भी छेड़छाड़ करने से धरती से रुष्ट होकर वापस स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर जाएगी।
केदारनाथ और बद्रीनाथ हिन्दू धर्म से संबंधित दो बड़े तीर्थस्थल हैं। जहां केदारनाथ को भगवान शंकर के विश्राम करने का स्थान माना गया है वहीं बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ माना गया है जहां भगवान विष्णु 6 महीने जागृत और 6 महीने निद्रा अवस्था में निवास करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जब गंगा नदी धरती पर पहुंची तो वह अपनी 12 धाराओं में विभाजित थी। लेकिन अब इसकी केवल 2 धाराएं जिन्हें अलकनंदा और मंदाकिनी के नाम से जाना जाता है, ही शेष रह गई हैं।
उसकी एक धारा अलकनंदा नाम से प्रचलित हुई और यहीं बद्रीनाथ धाम स्थापित हुआ। बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का धाम माना जाता है।
वहीं गंगा की दूसरी धारा, जिसे मंदाकिनी कहा जाता है के किनारे केदार घाटी है जहां सबसे प्रमुख तीर्थ धाम, केदारनाथ स्थापित है। यह पूरा स्थान रुद्रप्रयाग के नाम से जाना जाता है, ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान रुद्र ने अवतार लिया था।
केदार घाटी को विष्णु के अवतार नर-नारायण की तपो भूमि माना गया है, उनके कठोर तप से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव इस घाटी में स्वयं प्रकट हुए थे।
यहां नर-नारायण के ही नाम के दो पहाड़ भी हैं। पुराणों में ऐसा कहा गया है कि जिस दिन ये दो पर्वत आपस में मिल जाएंगे धरती पर से बद्रीनाथ धाम का रास्ता बंद हो जाएगा, भक्त इस धाम के दर्शन नहीं कर पाएंगे।
पुराणों में बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम से जुड़ी जो भविष्यवाणी की गई है उसे जानकर कोई भी सकते में पड़ सकता है। हिन्दू धर्म से जुड़े दस्तावेजों के अनुसार कलियुग में केदारनाथ और बद्रीनाथ, दोनों ही धाम लुप्त हो जाएंगे और भविष्यबद्री नाम के तीर्थ स्थल का उद्गम होगा।
बद्रीनाथ से संबंधित एक कथा के अनुसार सतयुग वो समय था, जब धरती पर पाप और दुष्कर्मों का नाम भी नहीं था। इस समय सामान्य मनुष्यों को भी ईश्वर के साक्षात दर्शन प्राप्त होते थे। इसके बाद आया त्रेता युग जब केवल ऋषि-मुनियों, देवताओं और कठोर तपस्वियों को ही भगवान के दर्शन मिलते थे।
फिर आया द्वापर युग जिसमें पाप पूरी तरह घुल चुका था। पाप के बढ़ते स्तर के कारण, किसी के लिए भी भगवान के दर्शन कर पाना असंभव हो गया। और अब है कलियुग…. पाप जिसका पर्यावाची बन गया है।
पुराणों के अनुसार कलियुग के पांच हजार वर्ष बीत जाने के बाद पृथ्वी पर केवल पाप ही रह जाएगा। जब यह युग अपने चरम पर पहुंच जाएगा तब मनुष्यों के आस्था और भक्ति की जगह लोभ-लालच और वासना बस जाएंगे।
शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि जब कलियुग में तपस्वियों की जगह ढोंगी-साधु ले लेंगे और भक्ति के नाम पर पाखंड और पाप का बोलबाला होगा, तब गंगा नदी, जिसका काम मनुष्य के पाप धोना है, वह रूठकर पुन: स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर जाएगी।
गंगा यदि लौट गई तो मनुष्य अपने ही पाप के बोझ के तले दबते चले जाएंगे, ना उन्हें मुक्ति मिलेगी ना मोक्ष, इस तरह वे खुद अपना ही अंत कर बैठेंगे।
कुछ समय पहले उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा कहीं पुराणों में लिखी इस बात की ओर इशारा तो नहीं करती कि अब धरती से भगवान रूठकर जाने वाले हैं? अगर वाकई ऐसा है तो इसका परिणाम संपूर्ण मनुष्य जाति को भुगतना पड़ सकता है।
लेकिन इस समस्या से बचने का एक उपाय भी है, अपने कर्मों को सुधार लें। पर क्या वो हमारे लिए मुमकिन है?
धन्यवाद : स्पीकिंगटरी