माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है तथा मन शुद्ध होता है। गंगा में स्नान करने के साथ साथ लोग यहां अस्थि-विसर्जन के लिए भी आते हैं। आइए जानते हैं कि पुराणों में गंगा तट पर देह त्यागने वालों तथा गंगा में अस्थि विसर्जन करने के बारे में क्या बातें बताई गयी हैं।
पुराणों में बताया गया है कि गंगातट पर देह त्यागने वाले को यमदंड का सामना नही करना पड़ता। महाभागवत में यमराज ने अपने दूतों से कहा है कि गंगातट पर देह त्यागने वाले प्राणी इन्द्रादि देवताओं के लिए भी नमस्कार योग्य हैं तो फिर मेरे द्वारा उन्हें दंडित करने की बात ही कहां आती है। उन प्राणियों की आज्ञा के मैं स्वयं अधीन हूँ। इसी कारण अंतिम समय में लोग गंगा तट पर निवास करना चाहते हैं।
पद्मपुराण में बताया गया है कि बिना इच्छा के भी यदि किसी व्यक्ति का गंगा जी में निधन हो जाए तो ऐसा व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु को प्राप्त होता है।
गंगा में अस्थि विसर्जन के पीछे महाभारत की एक मान्यता है कि जितने समय तक गंगा में व्यक्ति की अस्थि पड़ी रहती है व्यक्ति उतने समय तक स्वर्ग में वास करता है।
पद्मपुराण में जिक्र किया गया है कि यदि व्यक्ति अपनी मृत्यु के समय गंगाजल की एक बून्द भी अपने मुंह में दाल ले तो वह अपने द्वारा किये गए पापों से मुक्त हो जाता है तथा स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
गंगा को सबसे पवित्र नदी माना जाता है। यह हमारे बुरे कर्मों से हमें मुक्ति दिलाकर शुद्ध करती है। गंगा में अस्थि विसर्जन करने का मुख्य कारण यही है कि मृत व्यक्ति की आत्मा को उसके द्वारा किये गए पापों से मिलने वाले कष्टों से बचाया जा सके।