हिन्दू धर्म में मान्यता है कि किसी भी कार्य की शुरुआत से पहले भगवान गणेश को याद करना चाहिए| गणेश जी की अराधना से किसी कार्य को शुरू करना बहुत शुभ माना जाता है|
Ganesh Ji ke janm ki katha
गणेश जी के जन्म की कथा बहुत रोचक है| एक बार पृथ्वी पर असुरों का आतंक बहुत बढ़ गया था| ऐसे में पृथ्वी को असुरों के आतंक से बचाने के लिए देवताओं को असुरों के साथ युद्ध करना पड़ा| परन्तु देवता असुरों के आगे टिक नहीं पा रहे थे| इसलिए उन्होंने भगवान शिव से सहायता मांगी| इसलिए भगवान शिव को देवताओं की सहायता करने के लिए शिवलोक से दूर जाना पड़ा|
भगवान शिव की अनुपस्थिति में जब देवी पार्वती को स्नान की इच्छा हुई तो उन्हें डर हुआ कि कहीं उनकी अनुपस्थिति में कोई अनाधृकित प्रवेश न कर जाए। इसलिए देवी पार्वती ने अपनी शक्ति से एक बालक का निर्माण किया| जो शिवलोक की सुरक्षा करता| उस बालक का नाम पार्वती जी ने गणेश रखा|
देवी पार्वती ने गणेश जी को बहुत सी शक्तियां प्रदान की| उन्होंने गणेश जी को आदेश दिया कि वह शिवलोक में किसी को भी प्रवेश न करने दें| इसके बाद देवी पार्वती स्न्नान करने में व्यस्त हो गयी और गणेश जी अपनी पहरेदारी में लग गए|
उधर भगवान शिव की सहायता से देवों ने असुरों पर विजय प्राप्त कर ली| युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद भगवान शिव सर्वप्रथम देवी पार्वती को यह शुभ समाचार सुनाना चाहते थे| परन्तु भगवान शिव के प्रभुत्व से अनजान गणेश जी ने उन्हें घर में प्रवेश करने से रोक दिया|
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भगवान शिव के समझाने के बाद भी गणेश जी ने उनकी बात न सुनी| क्योंकि गणेश जी देवी पार्वती द्वारा दिए गए आदेश का पालन कर रहे थे| परन्तु बार – बार समझाने पर भी न समझने पर भगवान शिव को बहुत क्रोध आ गया और उन्होंने गणेश जी का सर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर प्रवेश कर गए|
जब पार्वती जी को यह सब पता चला तो उन्हें बहुत दुःख हुआ| उन्होंने भगवान शिव को बताया कि उन्होंने क्रोध में आकर अपने ही पुत्र का वध कर दिया है| पार्वती जी के अनुरोध पर भगवान शिव ने गणेश जी को फिर से जीवन देने का निर्णय किया|
परन्तु गणेश जी का सर पुनः धड़ से तो नहीं जोड़ा जा सकता था| परन्तु किसी जीवित प्राणी का सर जरूर स्थापित किया जा सकता था| इसलिए भगवान शिव ने एक हाथी का सर सूँड़-समेत गणेश जी के शरीर से जोड़ दिया और इस प्रकार गणेश जी के शरीर में पुनः प्राणों का संचार हुआ|