गणेश जी भगवान शिव तथा देवी पार्वती के पुत्र हैं। गणेश जी को विघ्नहर्ता, मंगलमूर्ति, लंबोदर, व्रकतुंड आदि कई नामों से पुकारा जाता है। आइए जानते हैं गणेश जी के बारे में कुछ दिलचस्प बातें।
शिव पुराण के अनुसार जब देवताओं ने भगवान शिव से त्रिपुर को नष्ट करने के लिए प्रार्थना की।उस समय भविष्यवाणी हुई कि त्रिपुर तब तक नष्ट नहीं हो सकता जब तक गणेश भगवान की पूजा न की जाए। तब भगवान शिव ने भद्रकाली के साथ मिलकर गणेश भगवान की पूजा की और इसके बाद त्रिपुर को नष्ट कर दिया।
बर्ह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक दिन परशुराम भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत गए। परन्तु उनके ध्यान में मग्न होने के कारण भगवान गणेश ने परशुराम को मध्य मार्ग में ही रोक दिया। जिस पर क्रोधित होकर परशुराम ने उन पर कुल्हाड़ी से वार किया जो स्वयं भगवान शिव ने उन्हें दी थी। परशुराम के द्वारा किये गए वार से गणेश जी का एक दांत टूट गया तथा तभी से वे एकदंत कहलाने लगे।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जब सभी देवता श्रीगणेश को आशीर्वाद दे रहे थे। तब शनिदेव सिर नीचे किए हुए खड़े थे।पार्वती द्वारा पूछने पर शनिदेव ने कहा कि उनके देखने पर बालक का अहित हो सकता है। लेकिन जब माता पार्वती के कहने पर शनिदेव ने बालक को देखा तो उनका सिर धड़ से अलग हो गया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार तुलसीदेवी गंगा तट से गुजर रही थीं, उस समय वहां श्रीगणेश भी तप कर रहे थे।श्रीगणेश को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी ने श्रीगणेश से कहा कि आप मेरे स्वामी बन जाइए। लेकिन श्रीगणेश ने विवाह करने से इंकार कर दिया। क्रोधवश तुलसी ने श्रीगणेश को दो विवाह करने का श्राप दे दिया और श्रीगणेश ने तुलसी को वृक्ष बनने का।
गणेश पुराण के अनुसार छन्दशास्त्र में 8 गण होते हैं- मगण, नगण, भगण, यगण, जगण, रगण, सगण, तगण। इनके अधिष्ठाता देवता होने के कारण भी इन्हें गणेश की संज्ञा दी गई है। अक्षरों को गण भी कहा जाता है। इनके ईश होने के कारण इन्हें गणेश कहा जाता है, इसलिए वे विद्या-बुद्धि के दाता भी कहे गए हैं।
महाभारत का लेखन श्रीगणेश ने किया है, ये बात तो सभी जानते हैं। लेकिन महाभारत लिखने से पहले उन्होंने महर्षि वेदव्यास के सामने एक शर्त रखी थी। श्रीगणेश ने महर्षि वेदव्यास से कहा था कि लिखते समय उनकी लेखनी क्षणभर के लिए भी नहीं रुकनी चाहिए।