एक दिन पति को घर आने में देर हो गयी पत्नी गुस्से के मारे आग बबूला हो रही थी क्योंकि आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था की पति इतनी देर तक बिन बताये घर से बाहर रहा हो|
पति के घर में प्रवेश करते ही पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा: “पूरे दिन कहाँ रहे? आफिस में पता किया, वहाँ भी नहीं पहुँचे! मामला क्या है?”
पत्नी की बातें सुन कर घबराहट के मारे पति के मुंह से बोल ना फूटे और वो हकला गया “वो-वो… मैं…” पति की हकलाहट पर झल्लाते हुए पत्नी फिर बरसी, “बोलते नही? कहां चले गये थे और ये गंन्दा बक्सा और कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये हो?”
पति ने थोड़ी हिम्मत करके जवाब दिया “वो मैं माँ को लाने गाँव चला गया था।”
पति का जवाब सुनते ही पत्नी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया उसने गुस्से के मारे पति को डाटनाशुरू कर दिया “क्या कहा? तुम्हारी मां को यहां ले आये? शर्म नहीं आई तुम्हें? तुम्हारे भाईयों के पास इन्हे क्या तकलीफ है?”
पत्नी इतने गुस्से में थी की उसने पास खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ देखा तक नहीं। पति ने दबीजुबान से कहा “इन्हें मेरे भाईयों के पास नहीं छोड़ा जा सकता। तुम समझ क्यों नहीं रहीं।”
“क्यों, यहाँ कोई कुबेर का खजाना रखा है? तुम्हारी सात हजार रूपल्ली की पगार में बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे चला रही हूँ, मैं ही जानती हूँ!”
पत्नी का स्वर उतना ही तीव्र था। पत्नी के कठोर वचन सुनकर पति आहत हो उठा तब उसने कठोरता अपनाई और कहा “अब ये हमारे पास ही रहेगी।”
“मैं कहती हूँ, इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ। वरना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी और इन महारानीजी को भी यहाँ आते जरा भी लाज नहीं आई?” कह कर पत्नी ने बूढी औरत की तरफ देखा, तो पाँव तले से जमीन ही सरक गयी!
झेंपते हुए पत्नी बोली: “मां, तुम?” “हाँ बेटा! तुम्हारे भाई और भाभी ने मुझे घर से निकाल दिया। दामाद जी को फोन किया, तो ये मुझे यहां ले आये।” बुढ़िया ने कहा|
पत्नी ने गद्गद् नजरों से पति की तरफ देखा और मुस्कराते हुए बोली। “आप भी बड़े वो हो, डार्लिंग! पहले क्यों नहीं बताया कि मेरी मां को लाने गये थे? मैं तो चिंता के मारे मरी जाया रही थी|”
सिर्फ पुरुष ही नहीं आज के समय में कुछ महिलायें भी हैं जिनको इस मानसिकता से उबरने की जरूरत है कि माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी|