द्रोपदी द्रुपद नरेश की पुत्री थी| अपनी पुत्री के विवाह के लिए द्रुपद ने स्वयंवर का आयोजन किया| उस समय पांडव वनवास व्यतीत कर रहे थे| स्वयंवर में धनुषकला की प्रतियोगता का आयोजन किया गया था| इस प्रतियोगिता में मछली को बिना देखे मछली की आँख को बाण से भेदना था| इस आयोजन में बहुत से देशों के राजा उपस्थित थे| दुर्योधन तथा कर्ण भी द्रोपदी के स्वयंवर में शामिल होने आये थे| वनवास काट रहे पांडव भी स्वयंवर में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे|
सभी उपस्थित राजाओं ने मछली की आँख को निशाना बनाने का प्रयास किया परन्तु सब के प्रयास असफल रहे| जब कर्ण ने धनुष उठाना चाहा तब द्रोपदी ने उसे सूत पुत्र कह कर स्वयंवर में हिस्सा लेने से मना कर दिया| इस बात पर नाराज हो दुर्योधन कर्ण समेत सारे कौरव वंहा से चले गए|
श्री कृष्ण के कहने पर ब्राह्मण वेष में बैठे अर्जुन ने धनुष उठाया और मछली की आँख को निशाना लगाकर स्वयंवर जीत लिया| इसके पश्चात् पाँचों पांडव अपनी द्रोपदी को लेकर माता कुंती के पास पहुंचे और कहने लगे कि देखो माँ, हम आपके लिए क्या लाये हैं| कुंती ने बिना देखे ही कह दिया कि जो भी लाए हो उसे पांचो भाई आपस में बाँट लो| इस बात से सभी बहुत दुखी हुए और श्री कृष्ण के कहने पर द्रोपदी ने पांचो पांडवों से विवाह कर लिया|
पाँचों पांडवों को बराबर का स्थान मिले| इसके लिए एक नियम बनाया गया| नियम यह था कि एक समय में पाँचों भाईओं में से एक ही भाई द्रोपदी के साथ समय व्यतीत करेगा| यदि द्रोपदी के महल के बाहर किसी भाई के जूते पड़े होंगे तो बाकियों में से कोई अंदर नहीं जायेगा| एक दिन युधिष्ठिर द्रोपदी के महल में द्रोपदी के साथ थे|
परन्तु उनके जूते एक कुत्ता उठाकर ले गया| जब अर्जुन द्रोपदी से मिलने आया तो उसे महल के बाहर कोई जूते नहीं दिखे और वह अंदर चला गया| इस कारण से अर्जुन को कठोर दंड भुक्तना पड़ा| तब द्रौपदी काफी दुखी हुई| इसी भेदभाव के कारण उसे नरक की प्राप्ति भी हुई थी|
पाँचों पतियों में से भीम द्रोपदी से सबसे अधिक प्रेम करता था| भीम ने ही हर कदम पर द्रोपदी का मान बचाया| सर्वप्रथम जब दुर्योधन के कहने पर दुशासन ने द्रोपदी का भरी सभा में अपमान किया तो उस समय पांचो पांडवो में से भीम ही था जो युधिस्ठिर के रोकने पर भी अपना गुस्सा ना रोक पाया और उसने भरे दरबार में दुशासन के छाती के लहू को पीने और द्रौपदी के केश धुलवाने की अमानवीय प्रतिज्ञा की| भीम ने उस समय क्रोध में दुर्योधन की जंघा तोड़ने की भी प्रतिज्ञा की जो की गदा युद्ध के नियमो के खिलाफ था|
अज्ञातवास के दौरान राजा विराट के साले कीचक ने द्रोपदी के ऊपर बुरी नजर डाली तो भीम ने अर्जुन, जो कि उस समय उर्वशी के श्राप से नपुंसक बना हुआ था, की मृदंग ध्वनि में कीचक को मार गिराया|
जब पांडव अपना राजपाट परीक्षित को सौंप कर शरीर सहित स्वर्ग जाने के लिए निकले, उस समय भी भीम ने कदम – कदम पर द्रोपदी की सहायता की| इस दौरान जब द्रोपदी सरस्वती नदी को पार नहीं कर पा रही थी तब भीम ने एक चट्टान को उठा कर नदी के बीच में रख दिया| वह चट्टान आज भी भीम पुल के नाम से प्रसिद्ध है|
इसीलिए द्रोपदी ने अपने अंत समय में कहा कि भीम ही उसका असली पति है और अगले जन्म में वह भीम को ही अपने पति के रूप में पाना चाहती है|