एक गांव में एक पुजारी रहते थे। वह हमेशा धर्म कर्म के कामों में लगे रहते थे। एक दिन वह जंगल के रास्ते से साथ वाले गाँव में जा रहे थे। जंगल में उनकी नजर एक विशाल पत्थर पर पड़ी उस पत्थर को देखकर उसके मन में विचार आया कि क्यों न इस पत्थर से मंदिर के लिए भगवान कि मूर्ति बनाई जाये। यह सोचकर पुजारी ने वो पत्थर उठवा लिया।
गाँव पहुँच कर पुजारी ने वह पत्थर एक बड़े मूर्तिकार को दिया और कहा कि वह इस पत्थर से मंदिर के लिए एक मूर्ति बना दे। मूर्तिकार अपने औजार लेकर पत्थर को काटने में जुट गया।
मूर्तिकार ने पत्थर को तोड़ने के लिए उस पर हथोड़े से प्रहार किया। परन्तु पत्थर बहुत कठोर होने कि वजह से टस से मस भी न हुआ। उसने एक के बाद एक लगातार 99 प्रहार किये। परन्तु पत्थर को तोड़ने में असफल रहा।
मुर्तिकार ने थक कर पुजारी के पास जाकर इस पत्थर से मूर्ति बनाने से इनकार कर दिया। यह सुनकर पुजारी बहुत निराश हुआ।
अब पुजारी ने वह पत्थर उठवा कर गाँव के एक छोटे से मूर्तिकार के पास भिजवा दिया। मूर्तिकार ने जब पत्थर पर पहला प्रहार किया तो पत्थर टूट गया। क्योंकि पत्थर पहले वाले मूर्तिकार कि चोटों से काफी कमजोर हो चुका था।
मूर्तिकार ने देखते ही देखते उस पत्थर से भगवान शिव की मूर्ति बना दी। यह देखकर पुजारी को बहुत प्रसन्नता हुई।
पुजारी मन ही मन पहले मूर्तिकार की दशा सोचकर मुस्कुराए कि अगर वह हार न मानता और एक प्रहार और कर देता तो वह सफल हो गया होता।
यह बात हम पर भी लागू होती है। हम हमेशा यह शिकायत रखते हैं कि हम बहुत से कठिन प्रयासों के बाद भी सफल नही हो पाते हैं। परन्तु सच यह होता है कि हम सब आखिरी प्रयास से पहले ही थक जाते हैं। इसलिए हमेशा कोशिश करते रहना चाहिए। क्या पता आपका कौन सा प्रयास ऐसा हो जो आपका जीवन बदल दे।