जब भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ तो वह खुद को घर में बहुत अकेला महसूस करती थी| क्योंकि भगवान शिव ज्यादातर ध्यान में मगन रहते थे| इसलिए देवी पार्वती के मन में इच्छा पैदा हुई कि सबकी तरह उनकी भी एक ननद होनी चाहिए थी| जिसके घर में रहने से उनका मन लगा रहता| परन्तु देवी पार्वती जानती थी कि भगवान शिव तो अजन्में हैं| इसलिए उन्होंने अपने मन की बात भगवान शिव से नहीं कही|
भगवान शिव से कुछ नहीं छिप सकता| अतः वह पार्वती जी के मन की बात जान गए थे| भगवान शिव ने पार्वती जी से पूछा कि क्या आपको कोई बात सता रही है? भगवान शिव के पूछने पर पार्वती जी से अपनी मन की बात बताये बिना रहा न गया| उन्होंने कहा कि जब आप ध्यान में लीन हो जाते हैं तो मैं स्वयं को अकेला महसूस करती हूँ| काश सभी विवाहित स्त्रियों की तरह मेरी भी एक ननद होती| जिसके साथ मेरा मन लगा रहता|
पार्वती जी की बात सुनकर भगवान शिव मुस्कुराने लगे| उन्होंने देवी पार्वती को कहा कि मैं आपको ननद तो लाकर दे दूं| पर क्या आपकी ननद के साथ बनेगी? पार्वती जी ने कहा कि भला ननद से मेरी क्यों नहीं बनेगी|
पार्वती जी की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान शिव ने अपनी शक्ति से एक देवी को उत्पन्न किया और कहा कि यह आपकी ननद असावरी देवी हैं| असावरी देवी बहुत मोटी थी और उनके पैरों में दरारें पड़ी हुई थी|
देवी पार्वती अपनी इच्छा की पूर्ति होने के कारण बहुत प्रसन्न थी| वे खुशी – खुशी अपनी ननद के लिए भोजन का इंतजाम करने लगी| असावरी देवी स्नान करने के पश्चात् देवी पार्वती से भोजन मांगने लगीं| देवी पार्वती ने असावरी देवी को भोजन परोसा| असावरी देवी ने भोजन करना आरम्भ किया और देखते ही देखते उन्होंने पार्वती जी के भोजन भंडार को समाप्त कर दिया| अब देवी पार्वती के पास भगवान शिव को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था| इस बात से पार्वती जी को बहुत दुःख हुआ|
इसके बाद असावरी देवी ने पार्वती जी से पहनने के लिए वस्त्र मांगे| देवी पार्वती ने असावरी देवी को जो वस्त्र दिए वह उन्हें छोटे पड़ गए| अब पार्वती जी अपनी ननद के लिए दूसरे वस्त्रों का इंतजाम करने में लग गयी| इतने में असावरी देवी को एक मजाक सूझा और उन्होंने अपने पैरों में आयी दरारों में देवी पार्वती को छुपा लिया|
भगवान शिव पार्वती जी को ढूंढते हुए असावरी देवी के पास पहुंचे| परन्तु असावरी देवी ने कहा कि उन्हें देवी पार्वती के बारे में कोई जानकारी नहीं है| इस पर भगवान शिव ने अपनी बहन से कहा कि कहीं यह तुम्हारी बदमाशी तो नहीं है? यह सुनकर असावरी देवी हंसने लगी| उन्होंने अपना पैर जमीन पर पटका| इससे उनके पैर की दरारों में दबी हुई पार्वती जी बाहर आकर गिर गयी|
अपनी ननद के ऐसे व्यवहार से पार्वती जी बहुत क्रोधित हुई और उन्होंने भगवान शिव से कहा कि मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई कि मैंने ननद की चाह की| कृपया अपनी बहन को जल्दी से ससुराल भेजने की कृपा करें|
भगवान शिव ने जल्दी ही असावरी देवी को कैलाश पर्वत से विदा कर दिया|