रामायण में श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है| किन्तु फिर भी श्री राम की कई बार आलोचना की जाती है कि उन्होंने अपनी गर्भवती पत्नी का त्याग कर उन्हें वन में भेज दिया था| परन्तु ऐसा क्या हुआ कि अपनी पत्नी को इतना प्रेम करने के पश्चात् भी श्री राम को देवी सीता का त्याग करना पड़ा| आइए कुछ ऐसे तथ्यों पर नजर डालते हैं जो बताएंगें कि श्री राम ने सीता जी को वन में क्यों भेजा|
अयोध्या के राजा बनने के बाद एक दिन श्री राम वेश बदल कर अयोध्या में भ्रमण करने के उद्देश्य से निकले| इस तरह वह अपनी प्रजा का हाल जानना चाह रहे थे| भ्रमण करते हुए श्री राम ने देखा कि एक धोबी अपनी पत्नी को क्रोध भरे शब्दों में कह रहा था कि मैं राम नहीं हूँ जो दूसरे के पास रही पत्नी को स्वीकार कर लूँ|
देवी सीता रावण द्वारा हरण किये जाने से पहले ही बदली जा चुकी थी तथा जब माया सीता ने अग्नि परीक्षा के लिए अग्नि में प्रवेश किया तो वह अग्नि में विलीन हो गई थी और देवी सीता पुनः श्री राम के साथ आ गई थी| श्री राम और देवी सीता के अलावा इस बात से कोई अवगत नहीं था|
उस धोबी की बात सुनकर श्री राम बहुत दुखी हुए| तब उनकी व्यथा देख सीता माता ने खुद वन में जाने की इच्छा जताई जिसे श्री राम ने होनी समझ कर मान लिया था|
श्री राम ने लक्ष्मण जी को कहा कि वे देवी सीता को वन में छोड़ आएं| जब लक्ष्मण जी देवी सीता को वन में छोड़ने गए तो वह उन्हें ऐसे अकेला वन में छोड़ कर वापिस जाने से आनाकानी कर रहे थे| तब देवी सीता ने लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि वह उन्हें छोड़कर चले जाएं और किसी को यह न बताएं कि वो कहां हैं|
जब श्री राम ने अश्वमेघ यज्ञ करवाया तो उनके पुत्रों ने अश्वमेघ का घोड़ा पकड़ लिया| इस तरह लव कुश के जरिए श्री राम और देवी सीता की फिर से मुलाकात हुई| इस घटना के बाद श्री राम सीता जी को अपने साथ वापिस अयोध्या ले जाना चाहते थे| परन्तु देवी सीता ने उन्हें बदनामी से बचाने के लिए वापिस जाने से मना कर दिया|
जब श्री राम और लक्ष्मण जी ने देवी सीता पर अयोध्या चलने के लिए जोर डाला तो वह धरती में समा गयी|