हमें जीवन में जो भी मिलता है। हम उसमें कभी खुश नही होते। हमें भगवान का दिया हुआ सब कम लगता है। हम सोचते हैं कि हम भगवान से जो मांगते हैं। वह हमारे लिए सही है। परन्तु हम यह भूल जाते हैं कि भगवान हमारे लिए हमसे भी अच्छा सोचता है। इस कहानी के माध्यम से आप समझ जायेंगें कि हमें ईश्वर की मर्जी में खुश रहना चाहिए।
एक बच्चा अपनी माँ के साथ एक दूकान पर गया। वह बच्चा बहुत प्यारा और मासूम था। दुकानदार को उसे देखकर उस पर बहुत प्यार आया। इसलिए उसने एक टॉफी का डिब्बा खोलकर उसके आगे कर दिया और कहा की जितनी चाहे उतनी टॉफियां ले लो। परन्तु बच्चे ने मना कर दिया।
दुकानदार ने फिर से बच्चे को टॉफी लेने के लिए कहा। लेकिन बच्चे ने दुकानदार के आगे हाथ फैलाकर कहा कि आप खुद ही दे दो।
दुकानदार ने टॉफियां निकालकर बच्चे की दोनों जेबों में डाल दी।
जब बच्चा अपनी माँ के साथ दूकान से बाहर निकला तब माँ ने पूछा कि जब दुकानदार ने टॉफी दी तो तमने ले ली परन्तु जब उसने तुम्हे खुद टॉफी लेने को कहा तो क्यों नही ली?
बच्चे ने बड़ी मासूमियत के साथ जवाब दिया- माँ, मेरे हाथ छोटे हैं, अगर मैं खुद टॉफी निकालता तो एक या दो टॉफी ही मेरे हाथ में आती। दुकानदार के हाथ बड़े थे। इसलिए मुझे ज्यादा टॉफियां मिल गयी।
ठीक इसी तरह हमें भी ईश्वर की मर्जी में खुश रहना चाहिए।
क्या पता वह हमें पूरा सागर देना चाहता हो और हम बस एक चम्मच लिए खड़े हों।