हिन्दू पुराणों के अनुसार ऋष्यमूक नाम का एक पर्वत हुआ करता था| इस पर्वत पर एक विशाल वानर रहता था जिसका नाम था ऋक्षराज| माना जाता है कि ऋष्यमूक पर्वत के नाम के पीछे का रहस्य इस वानर को पता था| ऋक्षराज ने बताया कि यह पर्वत वो जगह है जहां रावण के द्वारा सताए गए कई ऋषि एकत्रित होकर मौन धारण कर रावण के खिलाफ बैठे थे|
कहा जाता है कि जब रावण उस पर्वत के रास्ते से विश्व विजय के लिए निकल रहा था, तो उसकी नज़र लाखों की संख्या में बैठे ऋषियों के झुंड की तरफ गई| तो रावण ने राक्षसों से पूछा की ये सब यहाँ क्यों इक्ठ्ठे हुए है, तो राक्षस बोले की महाराज यह सब ऋषि यहाँ आपके विरुद्ध बैठे है, यह सब आपके द्वारा सताए जाने के कारण मौन धारण किये हुए है|
यह सब सुनकर रावण क्रोधित हो गया और राक्षसों को आदेश देकर बोला कि मार डालो इन सबको| कोई भी ऋषि ना बच पाए| रावण के आदेश का पालन करते हुए राक्षसों ने सभी ऋषियों की मृत्यु कर दी| उन्हीं लाखों ऋषियों की अस्थियों से वहाँ इस पर्वत का निर्माण हुआ, जिसका नाम ऋष्यमूक पर्वत रखा गया|
अापने रामायण में सुना ही होगा श्री कृष्ण और सुग्रीव की मित्रता के बारे में और ये भी सुनने को मिला होगा की सगे भाई होने के कारण भी बालि और सुग्रीव के बीच युद्ध हुआ था| परन्तु क्या आप जानते है बालि और सुग्रीव का जन्म कैसे हुआ|
तो आइए जानते है बालि और सुग्रीव के जन्म की कहानी:
ऋक्षराज, जो कि ऋष्यमूक पर्वत पर रहता था, शक्तिशाली होने के कारण बहुत ही घमंडी वानर था| वह हमेशा इसी पर्वत पर भ्रमण करता रहता था| एक दिन उसकी नजर पर्वत के पास के एक तालाब पर गई जो बहुत ही सुंदर था| परन्तु ऋक्षराज को इस बात का नहीं पता था कि उस तालाब में जो भी व्यक्ति स्नान करता है वह एक सुंदर स्त्री परवर्तित हो जाता है| इस बात से अंजान होकर वानर ने उस तालाब में कूद लगा ली और जैसे ही थोड़ी देर बाद वह बाहर निकला तो उसने अपने रूप में बदलाव पाया| उसने देखा की उसका रूप एक सुंदर नारी के रूप में परिवर्तित हो गया था|
नारी रूप धारण करके उसे बहुत लज्जा महसूस हो रही थी, किन्तु अब इसका कुछ निवारण नहीं था| उसी समय इंद्र वहां से गुज़र रहे थे तो उनकी नजर ऋक्षराज के स्त्री रूप पर पड़ी, इतना सुंदर रूप देख वह आकर्षित हो गए| और उनका तेज स्त्री के केशों पर गिरा| जिससे बालि का जन्म हुआ|
कुछ समय बाद सूर्य की दृष्टि भी उस सुंदर स्त्री पर पड़ी और उनका तेज नारी की गर्दन पर गिरा, जिससे दूसरे पुत्र सुग्रीव की उतपत्ति हुई|
बालि और सुग्रीव दोनों सगे भाई थे| बालि यानि इन्द्र का पुत्र बड़ा भाई था और सूर्य का पुत्र सुग्रीव छोटा भाई था| बालों पर तेज गिरने से बालि और ग्रीवा पर तेज गिरने से सुग्रीव नाम पड़ा| इन दोनों का पालन पोषण ऋक्षराज वानर के परिवर्तित हुए रूप यानि की उस स्त्री ने किया और उसी ऋष्यमूक पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया|