द्रोपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री थी। द्रोपदी का जन्म महाराज द्रुपद के यहां यज्ञकुंड से हुआ था। अर्जुन द्वारा स्वयंवर जीतने के बाद द्रोपदी का विवाह अर्जुन से हुआ। परन्तु दैवयोग से ऐसी घटना हुई कि द्रोपदी को पांच पांडवों की पत्नी बनना पड़ा।
जब द्रोपदी को किसी कारणवश पांच पांडवों की पत्नी बनना पड़ा। तब नारद मुनि ने द्रोपदी तथा पांडवों को ऐसा नियम बनाने को कहा जिस से द्रोपदी सभी भाईओं में बराबर रहे तथा किसी के बीच कोई मन मुटाव न हो। नारद जी की सलाह से पांडवों ने नियम बनाया कि द्रोपदी सभी भाईयों के साथ एक एक महीने रहेगी और जिस बीच जिस भाई के साथ द्रोपदी रहेगी, दूसरा भाई उनके महल में नही आएगा और यदि ऐसा हुआ तो उसे बारह वर्ष तक वनवास में रहना पड़ेगा।
एक बार जब द्रोपदी युधिष्ठिर के साथ थी। उस समय कुछ ऐसा घटित हुआ कि अर्जुन को द्रोपदी के महल में जाना पड़ा। क्योंकि अर्जुन को धर्म की रक्षा हेतु नियम भंग करना पड़ा था। इसलिए द्रोपदी और युधिष्ठिर ने उन्हें बहुत समझाया कि उन्हें वनवास जाने की कोई आवश्यकता नही है। लेकिन अर्जुन ने नियम का पालन करते हुए वनवास जाना स्वीकार किया।
वनवास के दौरान अर्जुन हरिद्वार पहुंचे। जब अर्जुन वहां गंगा स्नान कर रहे थे। उस समय नाग कन्या उलूपी की नजर अर्जुन पर गयी और वह अर्जुन की तरफ आकर्षित हो गयी। उलूपी अर्जुन को अपने साथ पाताल लोक ले गयी और अर्जुन से विवाह कर लिया। उलूपी ने अर्जुन को जल पर भी भूमि की तरह चलने का वरदान दिया। कुछ समय अर्जुन ने उलूपी के साथ नागलोक में ही व्यतीत किया।
नागलोक से प्रस्थान करने के बाद अर्जुन मणिपुर पहुंचे। मणिपुर में अर्जुन ने एक राज कन्या से विवाह किया। जिसका नाम चित्रांगदा था। इस विवाह से अर्जुन को वभ्रुवाहन नाम का एक पुत्र प्राप्त हुआ। अर्जुन ने तीन साल मणिपुर में बिताये और फिर वापिस इंद्रप्रस्थ की ओर लौटे।
इंद्रप्रस्थ लौटते हुए अर्जुन श्री कृष्ण के पास पहुंचे। यहां वह सुभद्रा से मिले तथा दोनों ने एक दूसरे से विवाह करने का विचार किया। श्री कृष्ण के सहयोग से दोनों का विवाह संभव हुआ।
इस तरह अर्जुन के वनवास के समय अर्जुन के तीन विवाह हुए।