जब अर्जुन को दिया गया श्राप बन गया उसके लिए वरदान

महाभारत में पांडवों में युधिस्ठिर सबसे बड़े थे उसके बाद भीम और उनसे छोटे अर्जुन थे जो की देवराज इंद्र के धर्मपुत्र थे| एक बार की बात है अर्जुन देवराज इंद्र के बुलावे पर देव लोक पहुंचे वहां एक अप्सरा जिसका नाम उर्वशी था वह अर्जुन पर मोहित हो गयी| देवराज इंद्र ने देखा की उर्वशी उनके धर्मपुत्र पर पूर्ण रूप से आसक्त हो चुकी थी तो उन्होंने उर्वशी को अर्जुन के पास भेजा|

परन्तु अर्जुन ने उर्वशी को देखते ही खड़े हो कर उनका अभिवादन किया और उसे कुरु वंश की माता कह कर संबोधित किया| क्योंकि एक समय उर्वशी कुरु राजवंश के पूर्वज राजा पुरुरावस की धर्मपत्नी हुआ करती थी| अर्जुन के मुख से अपने लिए माता का संबोधन सुनकर उर्वशी आग बबूला हो उठी|

और क्रोध वश उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दे दिया की उन्हें एक किन्नर की तरह जीवन व्यतीत करना पड़ेगा जो की केवल नाच गा ही सकता है और इस दौरान उनका पुरुषत्व समाप्त हो जाएगा| जब ये बात देवराज इंद्र को पता चली तो उन्होंने उर्वशी से श्राप की अवधी कम करने को कहा तब जाकर उर्वशी ने श्राप की अवधी एक वर्ष कर दी जो की पांडवों के अज्ञात वास के तेरहवें वर्ष में जाकर शुरू हुई|

पांडव जब वनवास में थे तब उन्हें एक वर्ष का अज्ञात वास भी काटना था और शर्त के मुताबिक अज्ञात वास के दौरान अगर कौरवों या उनके किसी जानकार को अगर पांडवों के ठिकाने का पता चल जाता तो उन्हें दुबारा से वनवास काटना पड़ता| पांडवों ने अज्ञातवास की अवधी में महाराजा विराट के राज्य विराट नगर में काटा था और उन्होंने अपनी पहचान छुपाने के लिए अलग अलग कार्य अपने हाथों में ले लिए थे|

युधिष्ठिर ने महाराज विरत की सभा में कंक नामक ब्राह्मण के वेश में द्युत का खेल सिखाने का कार्य संभाला| वहीँ महाबली भीम ने बल्लभ नामक रसोइये का भेष धारण कर भोजनालय का दारोमदार अपने कंधे पर ले लिया| वहीँ अर्जुन जो की उर्वशी के श्राप के कारण किन्नर बन गए थे उन्होंने बृहन्नला के भेष में महाराज विराट के पुत्री को नृत्य और संगीत की शिक्षा देनी शुरू की|

नकुल ने ग्रंथिक के नाम से महाराजा विराट के घोड़ो के देखभाल का कार्य आरम्भ किया वहीँ सहदेव ने तंतिपाल के नाम से गायों के सेवा का काम अपने हाथ में लिया| साथ ही द्रौपदी ने महाराजा विराट की रानी सुदेशना की सैर्न्धी के रूप में उनके केशों की साज सज्जा का कार्य किया| अज्ञात वास के दौरान अगर अर्जुन श्राप की वजह से किन्नर न होते तो उनके लिए अपने को छुपाना बड़ा ही मुश्किल हो जाता| इस प्रकार उर्वशी का श्राप अर्जुन के लिए वरदान बन गया और पांडवों ने कुशलता पूर्वक अपने अज्ञात वास की अवधी पूरी कर ली|

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