महाभारत के युद्ध में पांडवों के पुत्रों ने भी जमकर पराक्रम दिखाया था| अर्जुन ने नागकन्या उलूपी से भी विवाह किया था नागकन्या उलूपी से अर्जुन को एक पुत्र भी था| उस पुत्र ने महाभारत के युद्ध में कौरवों से जमकर लोहा लिया था शकुनी के छह भाई भी उसी के हाथों मारे गए थे| अर्जुन और नागकन्या उलूपी के विवाह के बारे में भी एक कथा प्रचलित है की जब द्रौपदी से विवाह के बाद पांडवों ने एक अहम् नियम बनाया था की जब कोई भी पांडव द्रौपदी के साथ होगा तो दूसरा उनके कमरे में नहीं आएगा अगर कोई इस नियम को तोड़ता है तोह उसे बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ेगा|
एक बार युधिस्ठीर जब द्रौपदी के साथ कमरे में थे तो अर्जुन अपना धनुष लेने कमरे में चले गए जिसकी वजह से उन्हें शर्तानुसार बारह वर्षों का वनवास भोगना पड़ा| वनवास के दौरान उनकी मुलाक़ात नागकन्या उलूपी से हुई और उलूपी को देखते ही अर्जुन उन्हें दिल दे बैठे बाद में दोनों ने विवाह कर लिया| कुछ समय के बाद उलूपी ने एरावन नामक पुत्र को जन्म दिया|
जब महाभारत का युद्ध हो रहा था तो एरावन भी अपने पिता और चाचाओं का साथ देने पहुँच गया| और अपने पराक्रम के बल पर कौरवों की सेना को गाजर मुली की तरह काटना शुरू कर दिया| इधर युद्ध अपने चरम पर था रोज दोनों ओर के लाखों सैनिक मारे जा रहे थे| हार कर पांडवों ने काली माता की आराधना की और अराधना पूर्ण करने के लिए किसी राजकुमार की स्वैकछिक बलि होनी थी| परन्तु कोई भी राजकुमार इसके लिए तैयार नहीं हुआ ये देखकर पांडव हतोत्साहित हो गए| एरावन बड़ा ही पित्र्भक्त पुत्र था और ऐसे समय पर उसने देखा की अगर कोई बलि के लिए तैयार नहीं हुआ तो पांडवों को माता काली के कोप का भाजन बनना पड़ेगा| अंततः एरावन अपनी इच्छा से माता काली के चरणों में अपनी बलि देने को तैयार हो गया परन्तु उसने एक शर्त रखी की वो कुंवारा नहीं मरना चाहता|
पांडव जहाँ एक ओर उसके स्वेच्छा से बलि देने की बात से जितने प्रसन्न थे वहीँ दूसरी ओर उन्हें ये चिंता खाए जा रही थी की ऐसे राजकुमार से कौन शादी करेगा जो की कल मरने वाला है| ऐसी कौन सी लड़की होगी जो सिर्फ एक दिन के लिए सुहागन बनेगी और बाकी की जिंदगी एक विधवा का जीवन बिताएगी| कृष्ण को जब ये बात पता चली तो उन्होंने मोहिनी रूप धारण किया और एरावन से शादी कर ली साथ ही साथ ये वरदान भी दिया की एरावन का पिता और चाचाओं के लिए दिया गया बलिदान खाली नहीं जायेगा| क्योंकि कृष्ण पुरुष होते हुए भी मोहिनी बने थे इसलिए किन्नर उन्हें अपने रूप में देखते हैं और एरावन को अपने पति के रूप में|
इसके बाद से आज भी एरावन को किन्नर अपना देवता मानते हैं और तमिलनाडु में 18 दिन के उत्सव में सत्रहवें दिन सोलह श्रींगार कर के एरावन से विवाह करते हैं और अठारहवें दिन सारा श्रृंगार हटा कर विधवाओं की तरह विलाप करते हैं|