महाराजा सागर कपिल मुनि के श्राप के कारण संपूर्ण क्षत्रिय समुदाय के साथ भस्म हो गए थे| उनके पौत्र और राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ के बहुत अनुनय विनय करने पर ऋषि ने उन्हें बताया की सिर्फ गंगा के जल से ही उनका उद्धार हो सकता है| ये सुनकर भागीरथ ने प्राण कर लिया की चाहे जो भी हो जाये वो अपने पूर्वजों का उद्धार कर के रहेंगे| इसके लिए चाहे उन्हें कुछ भी क्यों न करना पड़े वो करेंगे ऐसा सोच कर उन्होंने गंगा की आराधना शुरू की| कठोर तप से प्रसन्न होकर गंगा ने कहा पुत्र भागीरथ मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूँ मांगो क्या वर मांगते हो| भागीरथ ने कहा माता आप तो सर्वज्ञानी हैं आपको तो पता ही है की मैं अपने पूर्वजों के उद्धार हेतु आपकी तपस्या कर रहा हूँ की आप धरती पर आकर उनका उद्धार कर दें| इतना सुनकर गंगा ने कहा पुत्र मैं पृथ्वी पर आना तो चाहती हूँ परन्तु मेरे वेग से धरती का विनाश हो जायेगा|
अगर नीलकंठ शिव मुझे अपने जटाओं में थाम कर मेरा वेग संभाल सकते हैं तुम्हे उनकी आराधना करनी होगी| दृढनिश्चयी भागीरथ ने गंगा की बात मान कर शिव की आराधना करनी शुरू कर दी| कठोर तप से प्रसन्न हो कर भगवान् शिव ने भी भागीरथ को वर मांगने को कहा| भागीरथ ने कहा की प्रभु अगर आप गंगा का वेग अपनी जटाओं में संभाल ले तो गंगा धरती पर आकर मेरे पूर्वजों का उद्धार कर पाएंगी जो की कपिल मुनि के श्राप से आज तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाए हैं|
इसपर शिव ने तथास्तु कहा और जटाएं खोल कर खड़े हो गए| गंगा स्वर्ग से हर हर करती हुई सीधा भगवान् के मस्तक पर गिरने लगी| परन्तु शिव ने अपनी जटाओं में सारा वेग थाम लिया और धरती पर गंगा की एक बूँद भी नहीं गिरी| फिर भागीरथ के प्रार्थना करने पर भगवान् शिव ने अपनी एक जटा को निचोड़ा जटा से निकलने की वजह से गंगा जटाशंकरी के नाम से भी जानी गयी|
चूँकि जटा से निकलने के बाद भी गंगा का वेग बहुत ही तीव्र था गंगा की धारा ने अपने साथ रास्ते में पड़ने वाले जह्रु की कुटिया को बहा दिया| ये देखकर ऋषि क्रोध से लाल हो गए| और अपने तपोबल से गंगा की धारा को वही रोक लिया| ये देखकर भागीरथ ने ऋषि को सारी बात बताई सारी बात जान कर ऋषि ने कहा की अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए किया गया तुम्हारा प्रयास सराहनीय है मैं गंगा को मुक्त करता हु| जहा ऋषि की कुटिया थी वहां गंगा को जहान्वी के नाम से जाना जाने लगा|
उसके बाद गंगा ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुँच कर भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया| वहां से होते हुए गंगा सीधा बंगाल की खाड़ी में जा मिली जिसे आज गंगासागर के नाम से जाना जाता है|