भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है| इन्हें भोलेनाथ कहने के पीछे का कारण यह है कि भगवान शिव अपने भक्तों की पुकार बहुत जल्दी सुन लेते हैं और उन्हें उनके कष्टों से मुक्ति देते हैं| परन्तु जब भगवान शिव को क्रोध आ जाता है तो उनके क्रोध को शांत करना बहुत मुश्किल हो जाता है|
भगवान शिव को संहार के देवता के नाम से भी जाना जाता है| पुराणों में कई कथाएं मिलती हैं जिससे यह मालूम होता है शिव क्रोध में आते हैं तो किस तरह से देवताओं पर भी प्रहार करने से चूकते नहीं हैं|
पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को एक झूठ बोला कि उन्होंने शिवलिंग का आदि अंत जान लिया है| ब्रह्मा जी के झूठ बोलने पर भगवान शिव को ब्रह्मा जी पर बहुत क्रोध आया और क्रोधित होकर शिव जी ने ब्रह्मा जी का वह सिर काट दिया जिसने झूठ बोला था| इसके बाद से पंचमुखी ब्रह्मा चार मुखों वाले रह गए| इस घटना को भगवान शिव के क्रोध की पहली घटना माना जाता है|
जब देवी सती ने हवन कुंड में कूद कर आत्मदाह कर लिया था| उस समय भगवान शिव के अंश से उत्पन्न वीरभद्र ने बह्मा जी के पुत्र प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया था| दक्ष देवी सती के पिता थे| देवी सती ने दक्ष के रोकने पर भी भगवान शिव से विवाह किया था| इसलिए दक्ष ने भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी सती का अपमान किया था जिस कारण सती ने हवनकुंड में अपने प्राण त्याग दिए थे|
एक बार गणेश जी ने भगवान शिव को देवी पार्वती से मिलने से मना कर दिया| भगवान शिव के बहुत बार समझाने पर भी गणेश जी ने उनकी एक ना सुनी| अंत में भगवान शिव को क्रोध आ गया और दोनों के बीच युद्ध आरम्भ हो गया| क्रोधित शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट डाला|
तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली यह तीनों त्रिपुरासुर कहलाते हैं त्रिपुरासुर के आतंक का अंत करने के लिए महादेव ने धनुष बाण का प्रयोग किया था| शिव जी ने एक त्रिपुरासुर यानी तीनों असुरों का सिर एक साथ काटकर उनका अंत कर दिया और त्रिपुरारी कहलाए|
देवी लक्ष्मी का भाई एक दानव था| जिसका नाम जलंधर था| जलंधर देवताओं के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था| उसकी बुरी नजर देव पत्नियों एवं देवी पार्वती पर पड़ी इससे क्रोधित होकर भगवान विष्णु और शिव ने एक चाल चली और शिव जी ने जलंधर का वध कर दिया|