महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया था और युद्ध का संचालन भी किया था| इस युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई थी| परन्तु इस बात से केवल कुछ लोग ही अवगत हैं कि श्री कृष्ण के अलावा दूसरे देवताओं ने भी महाभारत के युद्ध में भूमिका निभाई थी|
महाभारत के युद्ध में देवताओं की संतानों ने भाग लिया था| इसलिए देवताओं को भी युद्ध लड़ने के लिए धरती पर आना पड़ा| इस युद्ध में भाग लेने वाले देवताओं में सबसे पहला नाम सूर्य देव का आता है| क्योंकि कर्ण सूर्य देव के पुत्र थे जो कुंती को विवाह से पूर्व वरदान के रूप में मिले थे| युद्ध के समय सूर्य देव कर्ण के पास आये और उन्हें इंद्र द्वारा किये जाने वाले छल के बारे में बताया और कहा कि यदि इंद्र उनसे कवच और कुंडल मांगने आएं तो यह उन्हें मत देना| इससे तुम्हारे प्राण बचे रहेंगे|
इंद्र ने भी महाभारत युद्ध में भूमिका निभाई थी| अर्जुन इंद्र के पुत्र थे| इसलिए इंद्र अपने पुत्र अर्जुन के लिए इस युद्ध का हिस्सा बने| इंद्र ने श्री कृष्ण से वचन लिया था कि वह सदैव अर्जुन की रक्षा करेंगे| इंद्र ने अपने पुत्र अर्जुन को युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए देवताओं के सारे दिव्यास्त्र दिए तथा उन्होंने अर्जुन की रक्षा करने के लिए कर्ण से छल करके उनका सुरक्षा कवच भी दान में मांग लिया|
महाभारत के युद्ध में भगवान शिव ने भी अपनी एक भूमिका निभाई थी| महाभारत में विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण ने पूरे युद्ध का संचालन किया तो भगवान भोलेनाथ भला विष्णु जी की सहायता करने में कैसे पीछे हट सकते थे| श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भगवान शिव की तपस्या की और किरात वेष में भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए और अर्जुन को पशुपतास्त्र भेंट किया| इस अस्त्र के कारण अर्जुन के लिए स्वर्ग के द्वार खुल गए जहां से अर्जुन सारे दिव्यास्त्र पाने में कामयाब हुआ|
महाभारत युद्ध के अंत में ब्रह्मा जी को भी युद्ध में भाग लेना पड़ा| यह घटना तब हुई जब अश्वत्थामा और अर्जुन दोनों ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया| ऐसे में सृष्टि की रक्षा के लिए ब्रह्मा ने ब्रह्मास्त्र को वापस लेने के लिए कहा। अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्था ऐसा नहीं कर पाए और अर्जुन की पुत्रवधू उत्तरा के गर्भ में पल रहे परीक्षित को इसका निशाना बनाया|