जब गोस्वामी तुलसीदास जी रामायण काल में इलाहाबाद से यमुनोत्री की परायण यात्रा पर निकले| तब उन्होंने रामचरित मानस के कुछ दोहे और चौपाइयां लिखने के लिए बाह के पारना गांव में यमुना नदी के किनारे हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की और छैकुर के पेड़ के नीचे बैठकर रामचरित मानस के कुछ दोहे और चौपाइयां लिखी| यहां पर रामबाग और सीता की कोढर स्थापित कर धर्म अध्यात्म की बयार बहाई थी| यह हनुमान मंदिर पारना में आज भी मौजूद है|
गोस्वामी तुलसीदास जी अपनी वृत्त परायण यात्रा के दौरान बटेश्वर, नौगांव, पारना, भाऊपुरा स्थानों पर गए| हनुमान जी की प्रतिमा पारना में स्थापित कर वह यहां 15 दिन रुके और रामचरित मानस के कुछ दोहे और चौपाइयां लिखी|
साहित्यकार डा. बीपी मिश्र के अनुसार तुलसीदास जी ने हनुमान प्रतिमा के पास ही अपनी सिद्ध पीठ रामबाग बनाई| पास में ही सीता की कोढर थी| यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मुराद पूरी होती थी| कई बार बाढ़ को झेलने के बाद पारना में हनुमत प्रतिमा वर्तमान में भव्य मंदिर में स्थापित है| हालांकि रामबाग और सीता की कोढर का अब अस्तित्व नहीं बचा है|
रामायण काल से यहां स्थापित हनुमान प्रतिमा पर साल में दो बार मेला लगता है| प्रत्येक मंगलवार यहां पर भजन कीर्तन का दौर चलता है| यहां हनुमान जी के इस मंदिर को लेकर लोगों में बहुत आस्था है|