एक बार भगवान श्री राम अपनी राजसभा में विराजमान थे| उसी समय वहां विभीषण का आगमन हुआ| विभीषण बहुत चिंतित और भयभीत लग रहे थे| सभा में पहुँच कर उन्होंने श्री राम को प्रणाम किया और कहने लगे कि हे प्रभु, मेरी और लंका की प्रजा की रक्षा कीजिए| कुम्भकर्ण का पुत्र मूलकासुर लंका पर बहुत कहर ढा रहा है| वह मुझसे लंका भी छीन लेगा और वहां की प्रजा को भी बहुत सताएगा|
भगवान श्री राम ने विभीषण को हिम्मत दी और कहा कि वह पूरी बात बताएं| विभीषण ने श्री राम को मूलकासुर के बारे में बताया कि कुंभकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था| इसलिए उस का नाम मूलकासुर रखा गया| मूलकासुर को अशुभ जान कर कुम्भकर्ण ने उसे जंगल में फिंकवा दिया था| जंगल में जब मधुमक्खियों ने मूलकासुर को देखा तो उन्होंने उसे पालने का निर्णय लिया| आज मूलकासुर उन्ही के कारण जीवित है|
जब मूलकासुर बड़ा हुआ तो उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या आरम्भ कर दी| ब्रह्मा जी ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे मनचाहा वर दिया| उनके दिए वर और बल के घमंड में उसने भयानक उत्पात मचा रखा है| जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके पुरे खानदान को नष्ट कर दिया है और लंका को जीत कर मुझे सौंप दिया है| तब से वह बदला लेने के लिए क्रोध में घूम रहा है|
विभीषण ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि मूलकासुर ने पातालवासियों को अपने साथ मिला लिया है| जिस दिन आपने लंका को मुझे सौंपा था| उसके कुछ दिन बाद ही उसने पातालवासियों की सहायता से लंका पर आक्रमण कर दिया| मैं 6 महीने तक उसका सामना करता रहा| परन्तु ब्रह्मा जी के दिए वरदान के कारण वह बहुत ताकतवर हो चूका है| इसलिए मैं ज्यादा समय उसके सामने टिक नहीं पाया| किसी तरह मैं अपने बेटे, मंत्रियों तथा स्त्री के साथ सुरंग के जरिए भागकर यहां पहुंचा हूं|
विभीषण ने श्री राम को मूलकासुर के प्रण के बारे में बताते हुए कहा कि मूलकासुर ने प्रण लिया है कि मैं पहले धोखेबाज भेदिया विभीषण को मारूंगा और फिर पिता की हत्या करने वाले राम को भी मार डालूंगा|
हमारे पास समय बहुत कम है| वह किसी भी समय यहां आता होगा| लंका और अयोध्या दोनों खतरे में हैं| अब आप ही सबकी रक्षा कर सकते हैं|
यह सब सुनकर श्री राम, लक्ष्मण तथा हनुमान जी सेना सहित लंका की ओर चल दिए| वहां पहुँचने के बाद श्री राम तथा मूलकासुर के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया| मूलकासुर ब्रह्मा जी से मिले वरदान के कारण भगवान श्रीराम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था|
युद्ध को अपने पक्ष में न जाता देख सब बहुत चिंतित थे| उसी समय ब्रह्माजी वहां आए और भगवान श्री राम से कहने लगे – ‘रघुनंदन! इसे तो मैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है| इसलिए इसे मारने का आपका प्रयास व्यर्थ ही जाएगा| मूलकासुर से संबंधित एक और बात जानना आपके लिए आवश्यक है| जब मूलकासुर के भाई – बंधु लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी होकर कहा, ‘चंडी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ’। इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया – ‘दुष्ट! तूने जिसे ‘चंडी’ कहा है, वही सीता तेरी जान लेगी।’ मुनि का इतना कहना ही था कि वह क्रोध में उन्हें खा गया बाकी मुनि उसके डर से चुपचाप खिसक गए। तो हे राम! अब कोई दूसरा उपाय नहीं है। अब तो केवल देवी सीता ही इसका वध कर सकती हैं। यह कहकर ब्रह्मा जी वहां से चले गए|
ब्रह्मा जी की बात सुनकर श्री राम ने हनुमान जी तथा गरुड़ को पुष्पक विमान से देवी सीता को लाने के लिए भेजा|
हनुमान जी ने अयोध्या पहुँच कर श्री राम का संदेश देवी सीता को दिया| पति का संदेश मिलते ही सीता जी तुरंत ही हनुमान जी तथा गरुड़ के साथ लंका के लिए चल दीं| वहां पहुंचकर देवी सीता को श्री राम द्वारा पूरी बात का पता चला और उन्हें बहुत क्रोध आया| भगवती सीता के शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था| यह छाया सीता चंडी के वेश में लंका की ओर बढ़ चलीं|
तभी विभीषण ने बताया कि इस समय मूलकासुर तंत्र-साधना करने गुप्त गुफा में गया है|
देवी सीता के जाने के बाद श्री राम ने सेना को आदेश दिया कि वह उसकी गुप्त गुफा में जाकर उसकी तांत्रिक क्रियाओं को तहस-नहस कर दें| श्री राम के आदेश अनुसार वानर सेना ने सब तहस – नहस कर दिया| जिस कारण मूलकासुर की तांत्रिक क्रियाएं भंग हो गयी और उसे बहुत क्रोध आ गया| वह सब छोड़कर वानर सेना के पीछे दौड़ा| हड़बड़ी में उसका मुकुट भी गिर पड़ा| फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया|
युद्ध के मैदान में छाया सीता को देखकर मूलकासुर कहने लगा कि तू जो भी है, यहां से अभी चली जा| मैं औरतों पर अपनी मर्दानगी नहीं दिखाता|
छाया सीता ने भी भीषण आवाज करते हुए कहा, ‘मैं तुम्हारी मौत चंडी हूं| तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों और ब्राह्मणों को खा डाला था, अब मैं तुम्हें मारकर उसका बदला चुकाऊंगी|’ इतना कहकर छाया सीता ने मूलकासुर पर 5 बाण चलाए| मूलकासुर ने भी जवाब में बाण चलाए| कुछ देर तक घोर युद्ध हुआ, पर अंत में ‘चंडिकास्त्र’ चलाकर छाया सीता ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया और वह लंका के दरवाजे पर जा गिरा|
यह देखकर मूलकासुर की सेना डर गई और देवी सीता के इस रूप को देखकर भाग गयी| छाया सीता लौटकर सीता के शरीर में प्रवेश कर गई| मूलकासुर से दुखी लंका की जनता ने मां सीता की जय-जयकार की और विभीषण ने उन्हें धन्यवाद दिया| कुछ दिनों तक लंका में रहकर श्री राम सीता सहित पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आए|