पवन पुत्र हनुमान जी भगवान श्री राम के बहुत बड़े भक्त हैं| हनुमान जी की तरह श्री राम को भी अपने भक्त हनुमान से बहुत लगाव था| रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब से हनुमान जी का प्रभु श्री राम से मिलाप हुआ| तब से हनुमान जी श्री राम की सेवा में लगे रहे| कहते हैं आज भी जहां श्री राम का गुणगान होता है हनुमान जी किसी न किसी रूप में वहीं होते हैं|
आइए जानते हैं कि प्रभु श्री राम ने अपने भक्त हनुमान को क्या वरदान दिया|
रावण की हत्या करने के पश्चात् भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त कर ली| लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद वह अपने राज्य अयोध्या वापिस आये| एक दिन श्री राम अपने परिजनों के साथ बैठे हुए वार्तालाप कर रहे थे| युद्ध में हनुमान जी द्वारा हर पड़ाव पर श्री राम की सहायता करने की बात चल रही थी| इसलिए श्री राम हनुमान जी द्वारा की गयी सहयता को याद कर के भावविभोर हो रहे थे|
श्री राम के मन में आया कि हनुमान जी ने उनकी बहुत सहायता की है| परन्तु मैं उन्हें कुछ भी नहीं दे पाया| यह सोचकर उन्होंने हनुमान जी को अपने पास बुलाया और कहने लगे कि मैंने विभीषण को युद्ध में जीता हुआ लंका राज्य दिया| सुग्रीव को किष्किंधा का राजा और अंगद को वहां का युवराज बनाया| आज मैं तुम्हे भी कुछ देना चाहता हूँ| इसलिए तुम मुझसे कोई भी वरदान मांग सकते हो|
हनुमान जी अपने प्रभु श्री राम की निष्काम भाव से भक्ति करते थे| अपने प्रभु की यह बात सुनकर हनुमान जी ने बहुत विनम्रता से कहा कि प्रभु, आप मुझसे बहुत प्रेम करते हैं| मुझ पर आपकी असीम कृपा है| अब और मांगकर मैं क्या करूंगा|
परन्तु श्री राम उस समय हनुमान जी की भक्ति से बहुत खुश थे| इसलिए वे चाहते थे कि वे हनुमान जी को कुछ दें| यह देख हनुमान जी ने कहा कि प्रभु, आपने सभी को एक-एक पद(चरण) दिए हैं| क्या आप मुझे भी पद दे सकेंगे| श्री राम कुछ समझ नहीं पाए, फिर भी बोले तुम्हें कौन सा पद चाहिए हनुमान?
अपने स्थान से उठ कर हनुमान जी ने प्रभु श्री राम के चरण पकड़ लिए और कहने लगे कि मैं इन दो पदों की हर क्षण सेवा करता रहूं, मुझे केवल यही वरदान चाहिए|
हनुमान जी की यह बात सुनकर श्री राम की आँखों से अश्रु बहने लगे| उन्होंने हनुमान जी को गले से लगा लिया और उनको मनचाहा वरदान भी दिया|