एक बार देवी पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर बैठी हुई थी| भगवान शिव कुछ देर देवी पार्वती से वार्तालाप करने के बाद अपनी तपस्या में लीन हो गए|
भगवान शिव के तपस्या में लीन होने के कुछ समय पश्चात देवी पार्वती को भूख लग गयी| भगवान शिव के भोजन ग्रहण करने से पूर्व वह भोजन नहीं कर सकती थी| इसलिए वह भगवान शिव का तपस्या से उठने का इंतजार करने लगी| काफी समय बीत गया| परन्तु भगवान शिव अभी भी अपने ध्यान में मगन थे| पत्नी धर्म के अनुसार पार्वती जी भगवान शिव को भोजन खिलाये बिना स्वयं भोजन ग्रहण नहीं करना चाह रही थी| परन्तु उनकी भूख बढ़ गयी थी और भूख के कारण वह व्याकुल हो रही थी|
देवी पार्वती ने भगवान शिव को उनकी तपस्या से उठाने के लिए बहुत प्रयत्न किये| परन्तु उनके सब प्रयत्न असफल रहे| भूख सहन न हो पाने के कारण पार्वती जी बहुत व्याकुल हो गयी और उन्हें सब कुछ भूल गया| इसी व्याकुलता से उन्होंने भगवान शिव को भोजन समझ कर निगल लिया|
भगवान शिव को निगलने के बाद पार्वती जी के शरीर से धूम राशि निकलने लगी| कुछ समय पश्चात् पार्वती जी के समक्ष एक कन्या खड़ी थी जिनके चारों ओर केवल धुआं ही धुआं था| तभी वहां भगवान शिव प्रकट हुए| धुएं से लिपटी उस सुंदर कन्या को देखकर वह पार्वती जी से बोले कि आपका यह सुंदर अवतार धुएं में लिपटे होने के कारण धूमावती और धूम्रा के नाम से जाना जायेगा|
धूमावती देवी का कोई स्वामी नहीं है| अपने पति, भगवान शिव को निगल लेने के परिणामस्वरूप देवी विधवा हुई, इसीलिए देवी स्वामी हीन हैं। इनकी उपासना विपत्ति नाश, रोग – निवारण, युद्ध – जय, उच्चाटन तथा मारण के लिए की जाती है| शाक्तप्रमोद नामक हिन्दू ग्रंथ में बताया गया है कि जो देवी धूमावती की पूजा – उपासना करते हैं, उन पर दृष्टाभिचार का प्रभाव नहीं पड़ता|
तंत्र ग्रंथों में धूमावती को ही उग्रतारा कहा गया है| देवी जिस पर भी प्रसन्न हो जाती हैं उसे रोग और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और यदि देवी धूमावती किसी से क्रोधित हो जाएं तो उस व्यक्ति को अपने जीवन में बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं|