पौराणिक कथाओं के अनुसार जब गणेश जी का जन्म हुआ तो सभी देवी – देवता भगवान शिव तथा देवी पार्वती को बधाई देने कैलाश पर्वत पहुंचे| सभी देवताओं के साथ शनि देव भी कैलाश पर्वत पधारे| परन्तु शनि देव सबसे पीछे खड़े थे| शनि देव श्री कृष्ण के भक्त थे| अपनी आँखें नीचे करके वे श्री कृष्ण की भक्ति में लीन थे|
सबसे पहले कैलाश पर पहुँच कर शनि देव ने वहां पहुंचे हुए सभी देवों – ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि को प्रणाम किया| इन सबको प्रणाम करने के बाद वह गणेश जी से मिलने देवी पार्वती के पास पहुंचे| देवी पार्वती का आशीर्वाद लेने के बाद उन्होंने अपना मुख गणेश जी की ओर किया किन्तु उनकी ओर नहीं देखा| शनि देव के ऐसे बर्ताव को देख कर देवी पार्वती को थोड़ी हैरानी हुई| उन्होंने शनि देव से गणेश की ओर न देखने का कारण पूछा|
तब शनि देव ने देवी पार्वती को जवाब देते हुए कहा कि मेरी दृष्टि नीचे रहने के पीछे एक कारण है| मैं बचपन से ही भगवान श्री कृष्ण का भक्त हूँ| विषय भोगों से विरक्त मैं हर समय उनकी तपस्या में लीन रहता था| जब मेरी आयु विवाह योग्य हुई तो मेरे पिता ने मेरा विवाह कर दिया| मेरी पत्नी बहुत तेजस्विनी थी|
वह भी तपस्या में लीन रहती थी| एक दिन ऋतुस्नान के बाद वह मेरे समीप आयी| परन्तु उस समय मैं श्री कृष्ण के ध्यान में मगन था| इसलिए मुझे अपनी पत्नी के आने का आभास नहीं हुआ| इस बात से उसे क्रोध आ गया और क्रोध में आकर उसने मुझे श्राप दे दिया कि आज के बाद तुम्हारी दृष्टि सदैव नीचे रहेगी| यदि तुमने किसी पर अपनी दृष्टि डाली तो उसका नाश हो जायेगा|
यही कारण है कि मेरी दृष्टि सदैव नीचे रहती है और यही कारण है कि मैंने बालक गणेश की तरफ निगाहें उठा कर नहीं देखा|