हम सभी जानते हैं कि मरदाना जी गुरु नानक देव जी के शिष्य थे| वह सदा गुरु नानक देव जी के साथ ही रहते थे| परन्तु क्या आप जानते हैं कि मरदाना जी गुरु नानक देव जी के शिष्य कैसे बने? आइए जानते हैं गुरु नानक देव जी के बचपन के उस प्रसंग के जिस कारण मरदाना जी उनके शिष्य बन गए|
एक दिन गुरु नानक देव जी घूमते – घूमते किसी अन्य मोहल्ले में पहुँच गये| उस मोहल्ले के एक घर से रोने की आवाज सुन कर गुरु नानक उस घर में चले गए| घर के अंदर जाकर उन्होंने देखा कि एक औरत अपने घर के बरामदे में बैठ कर बहुत विलाप कर रही थी|
उस औरत को देखकर गुरु नानक देव जी के बाल मन पर गहरा असर हुआ| उस औरत के विलाप का कारण जानने के लिए गुरु नानक उसके पास चले गए| पास जाकर उन्होंने देखा कि उस औरत की गोद में एक नवजात शिशु था| बालक नानक ने औरत से उसके इस तरह विलाप करने का कारण पुछा।
औरत ने जवाब दिया कि मुझे पुत्र हुआ है| मैं इसके और अपने दोनों के नसीबों को रो रही हूँ| अगर यह कहीं और जन्म ले लेता तो कुछ दिन जी लेता| परन्तु मैंने इसे जन्म दिया है इसलिए यह मर जायेगा|
गुरु नानक जी ने पूछा कि आपको कैसे पता कि यह मर जायेगा ?
औरत ने जवाब दिया कि इससे पहले मैंने जितने बच्चों को जन्म दिया, उनमें से कोई भी नहीं बचा|
बाल नानक जी जमीन पर आलती पालती मार कर बैठ गये और बोले, इसे मेरी गोद में दे दो।
उस औरत ने अपना बच्चा गुरु नानक देव जी की गोद में दे दिया|
बच्चे को गोद में लेने के बाद नानक जी बोले कि इसने तो मर जाना है ना तो इस बालक को मेरे हवाले कर दो|
बच्चे की माँ ने हामी भर दी|
गुरु नानक देव जी ने उस औरत से बच्चे का नाम पूछा तो उस औरत ने जवाब दिया कि इसने तो मर जाना है इसलिए मैं इसे मरजाना कह कर ही बुलाती हूँ|
गुरु नानक देव जी ने कहा कि अब यह मेरा हो गया है तो इसका नाम मैं रखता हूँ मरदाना|(मरदाना का हिंदी में अर्थ है जो मरता नहीं है|)
इसके बाद नानक जी उस बालक को लौटाते हुए बोले कि मै इसे आपके हवाले करता हूँ| जब मुझे इसकी जरूरत होगी, मै इसे ले जाऊँगा|
उस औरत के बाकी बच्चों की तरह इसकी मृत्यु नहीं हुई|
इस तरह यह बालक मरदाना आगे चलकर गुरु नानक का परम मित्र तथा शिष्य बना| मरदाना जी ने अपनी पूरी उम्र गुरु नानक देव जी की सेवा में ही गुजारी|
गुरु नानक देव जी के साथ मरदाना जी का नाम आज तक जुड़ा हुआ है|