वनवास के बाद जब श्री राम अयोध्या वापिस आये| तो पूरी अयोध्या को उनके स्वागत के लिए दुल्हन की तरह सजाया गया| अयोध्या पहुँचने पर सीता जी को स्मरण हुआ कि उन्होंने माँ सरयू अर्थात सरयू नदी से मन्नत मांगी थी कि यदि वे अपने पति और देवर के साथ सकुशल अयोध्या वापस आ जायेंगे तो वापिस आकर वे सरयू नदी की पूजा-अर्चना करेंगे|
यह बात याद आते ही सीता जी अपने साथ लक्ष्मण जी को लेकर रात्रि में सरयू नदी के किनारे पहुंची| सीता जी ने पूजा के लिए लक्ष्मण जी को सरयू नदी का जल लाने के लिए कहा| सीता जी के कहे अनुसार लक्ष्मण जी जल लेने के लिए जैसे ही घड़ा लेकर सरयू नदी में उतरे, नदी में से एक अघासुर नामक राक्षस निकला|
राक्षस ने लक्ष्मण जी को निगलने के लिए अपना मुँह खोला ही था कि यह दृश्य देखकर भगवती स्वरूपा सीता जी ने लक्ष्मण जी को बचाने के लिए अघासुर के निगलने से पहले स्वयं ही लक्ष्मण जी को निगल लिया|
जैसे ही सीता जी ने लक्ष्मण जी को निगला उनका शरीर जल बनकर गल गया| यह सारा दृश्य हनुमान जी देख रहे थे| क्योंकि वह अदृश्य रूप में सीता जी के साथ सरयू तट पर आए थे| हनुमान जी ने वह जल घड़े में एकत्रित किया और भगवान राम के पास पहुंचे|
हनुमान जी ने सारा आँखों देखा हाल श्री राम को सुनाया| हनुमान जी की बात सुनकर श्री राम ने उनसे कहा कि इस राक्षस को भगवान भोलेनाथ का वरदान प्राप्त है कि जब त्रेतायुग में सीता और लक्ष्मण का तन एक तत्व में बदल जायेगा| तब उसी तत्व के द्वारा इस राक्षस का वध होगा| इस जल को इसी क्षण सरयु नदी में अपने हाथों से प्रवाहित कर दो| इस जल के सरयु के जल में मिलने से अघासुर का वध हो जायेगा और सीता तथा लक्ष्मण पुन:अपने शरीर को प्राप्त कर सकेंगे|