कहा जाता है कि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन करना अशुभ होता है। इस दिन चन्द्रमा के दर्शन न करने के पीछे एक पौराणिक कथा है।
एक बार गणेश जी और कार्तिकेय के बीच एक शर्त लगी थी। इस शर्त में गणेश जी अपने माता-पिता की परिक्रमा करने के बाद विजयी हुए। इस शर्त को जीतने के फलस्वरूप भगवान शिव तथा माता पार्वती ने उन्हें वरदान दिया कि सभी देवों में वे सर्वप्रथम पूज्य माने जायेंगे।
जब देवतायों को इस बारे में पता चला तो वह गणेश जी की स्तुति के लिए तुरंत वहां पहुँच गए। सभी देवों के साथ चन्द्र देव भी वहां पधारे। परन्तु वह गणेश जी की स्तुति के लिए आगे नही आये बल्कि दूर खड़े होकर गणेश जी को देखकर मुस्कुराते रहे।
चन्द्र देव को अपने रूप एवं सौन्दर्य का बहुत अभिमान था तथा गणेश जी को देखकर मुस्कुराने का उनका उद्देश्य केवल गणेश जी के गजमुख का उपहास उड़ाना था।
गणेश जी चन्द्र देव के उद्देश्य को समझ चुके थे। इस बात से उन्हें बहुत क्रोध आया और इसी क्रोध में उन्होंने चन्द्रमा को श्राप दे दिया कि “जिस सौन्दर्य के अभिमान में चूर होकर तुम मेरा अपमान करने के इरादे से यहाँ आये हो, आज के बाद तुम उसी से रहित हो जाओगे। यहाँ तक कि तुम अपने अस्तित्व के लिये भी छटपटाओगे; क्योंकि तुम्हारा रंग इतना काला हो जायेगा, कि तुम लोगों के सामने होते हुये भी उन्हें नज़र नहीं आओगे।”
यह सुनकर चन्द्र देव बहुत भयभीत हो गये। उन्हें अपनी गलती का अहसास होने लगा। उन्होंने गणेश जी से माफी मांगी और उनसे श्राप मुक्त करने की विनती की।
चन्द्र देव की विनती सुन कर गणेश जी का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने कहा “श्राप तो निष्फ़ल नहीं जाता, परन्तु मैं इतना कर सकता हूँ कि अब से तुम सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होकर धीरे – धीरे अपने पूर्ण स्वरूप को प्राप्त करोगे। परन्तु ये स्वरूप फिर धीरे – धीरे विलीन हो जायेगा और ऐसा बार-बार होता रहेगा।
यह सब देखकर लोगों को सबक मिलेगा और कोई भी कभी अपने रूप एवं सौन्दर्य पर घमण्ड नहीं करेगा। यह दिन तुम्हारे ‘दण्ड-दिवस’ के रूप में याद किया जाएगा। जो व्यक्ति भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन करेगा, वह किसी झूठे इल्जाम में फसेगा और लोगों के बीच बदनाम हो जायेगा।”