काशी विश्वनाथ वाराणसी में स्थित है। यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। लोग यहाँ मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं। क्योंकि इस मन्दिर को लेकर मान्यता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माना जाता है कि यदि यहां पर कोई अपने प्राण त्याग करे तो उसे मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन के चक्कर से छूट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो।
ऐसी मान्यता है कि एक भक्त को भगवान शिव ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि गंगा स्नान के बाद उसे दो शिवलिंग मिलेंगे और जब वो उन दोनों शिवलिंगों को जोड़कर उन्हें स्थापित करेगा तो शिव और शक्ति के दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी और तभी से भगवान शिव यहां मां पार्वती के साथ विराजमान हैं|
प्राचीन विश्वनाथ के विषय में कुछ जानने योग्य बातें
- मंदिर के ऊपर के सोने के छत्र को ले कर यह मान्यता है कि अगर उसे देख कर कोई मुराद मांगी जाती है तो वह अवश्य ही पूरी होती है
- रानी अहिल्या द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार कराने के पश्चात इंदौर के महाराज रणजीत सिंह ने मंदिर के टावर पर सोना लगाने का कार्य किया।
- मंदिर कक्ष में जाने पर आप पाएंगे की यहां शिव लिंग काले पत्थर का बना हुआ है। इसके अलावा दक्षिण की तरफ़ तीन लिंग हैं, जिन्हें मिला कर नीलकंठेश्वर कहा जाता है।
- पुराणों, उपनिषद से लेकर बहुत सी प्राचीन किताबों में इस शहर का ज़िक्र मिलता है | काशी शब्द की उत्पत्ति कश से हुई है, जिसका अर्थ होता है चमकना।
- इतिहास में काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का समय 1490 बताया जाता है।
- काशी में बहुत से शासकों ने शासन किया, जिनमें से कई बहुत नामी रहे जबकि कई गुमनामी के दौर में खो गये।
- इस शहर पर बौद्धों ने भी काफ़ी वर्षों तक शासन किया है।
- गंगा किनारे बसा यह शहर कई बार तबाही और निर्माण का साक्षी बना है, जिसका असर काशीनाथ मंदिर पर भी पड़ा।
- इस मंदिर को बहुत बार तोड़ा और बनाया जा चुका है
- औरंगज़ेब मंदिर को तोड़ कर उसके स्थान पर मस्जिद बनाना चाहता था, आज भी मंदिर की पश्चिमी दीवार पर मस्जिद के लिए की गई खूबसूरत नक्काशी को साफ़ देखा जा सकता है।
- काशीनाथ मंदिर के वर्तमान रूप का श्रेय इंदौर की रानी अहिल्या को जाता है।
- कहा जाता है कि भगवान शिव एक बार उनके सपने में आये थे और मंदिर बनाने के लिए कहा था।
ब्रम्ह बेला से खुल जाता है मन्दिर
यह मंदिर प्रतिदिन 2.30 बजे भोर में मंगल आरती के लिए खोला जाता है जो सुबह 3 से 4 बजे तक होती है। दर्शनार्थी टिकट लेकर इस आरती में भाग ले सकते हैं। तत्पश्चात 4 बजे से सुबह 11 बजे तक सभी के लिए मंदिर के द्वार खुले होते हैं। 11.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक भोग आरती का आयोजन होता है। 12 बजे से शाम के 7 बजे तक पुनः इस मंदिर में सार्वजनिक दर्शन की व्यवस्था है। चढ़ावे में चढ़ा प्रसाद, दूध, कपड़े व अन्य वस्तुएँ गरीबों व जरूरतमंदों में बाँट दी जाती हैं।