मार्कडेय पुराण में वर्णित है की नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के जिन नौ शक्तियों की पूजा-आराधना की जाती है, उनके नाम एवं संक्षिप्त महत्व कुछ इस प्रकार से है-
देवी दुर्गा का पहला रूप शैल पुत्री, जिनकी उपासना से मनुष्य अन्नत शक्तियां प्राप्त करता हैं तथा कुण्डलिनी भी जागृत कर सकता है। कुण्डलिनी में मनुष्य अपनी सभी इन्द्रियों को जागृत करता है जिससे वह अपने अन्दर एक विशेष शक्ति को जगा लेता है|
नवरात्रि के दुसरे दिन देवी दुर्गा के ब्रहमचारणी रूप की पूजा की जाती है, देवी का यह रूप तपस्या का सूचक है। इसलिए तप करने वाले हर साधक को देवी ब्रहमचारणी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
नवरात्रि के तीसरे दिन देवी दुर्गा के चंद्रघंटा रूप की पूजा की जाती है देवी दुर्गा के इस रूप का ध्यान करके मनुष्य लौकिक शक्तिया प्राप्त कर सकता हैं, साथ ही सांसारिक कष्टों से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा उपाय भी है।
देवी दुर्गा के चौथे रूप का नाम देवी कूष्माण्डा है और देवी दुर्गा के इस रूप का ध्यान, पूजन, आराधना एवं उपासना करने से साधक को निरोगी काया अर्थात आधि-व्याधि से मुक्ति मिलती है।
देवी दुर्गा के पाचवे रूप देवी स्कंदमाता को कार्तिकेय की माता माना जाता है, इन्हें सूर्य मण्डल की देवी भी कहा जाता हैं। इसी वजह से ऐसी मान्यता है की इनके पुजन से साधक को लम्बी आयु और तेजस्वी होने का वरदान मिलता है।
देवी दुर्गा की छठी शक्ति का नाम देवी कात्यानी है, इनकी उपासना से मनुष्य की सभी मनोकामनाऐं जैसे की धर्म, अर्थ, काम और अन्त में मोक्ष, चारों प्राप्त होते हैं| इसीलिए इन्हें सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाली भी कहते हैं|
देवी दुर्गा का सातवाँ रूप कालरात्रि के नाम से जाना जाता है, कालरात्रि का अर्थ काल यानी की मुत्यृ है| देवी के इस रूप की आराधना से मनुष्य को मुत्यृ का भय नहीं सताता है एवं साधक के ग्रह दोषों का विनाश होता है।
महागौरी देवी दुर्गा का आठवां रूप है, इनकी आराधना करने से मनुष्य में सद्गुणों और दैवीय सम्पदा का विकास होता है साथ ही साधक को कभी भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पडता।
सिद्धीदात्री को देवी दुर्गा के नौवें रूप की तरह माना जाता है इनकी पूजा नवरात्रि के अन्तिम दिन की जाती हैं| अपने नाम के अनुसार ही माँ सिद्धीदात्री, साधक को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं इसे पाने के बाद मनुष्य को किसी भी तरह की जरूरत नही रह जाती।
हमारे धर्म के अनुसार दुर्गा सप्तशती कुल 700 श्लोकों का संग्रह हैं इसकी रचना स्वयं ब्रह्मा, महर्षि विश्वामित्र और महर्षि वशिष्ठ ने की है| देवी दुर्गा के बारे में लिखे गए इन 700 श्लोकों की वजह से ही इस ग्रंथ को दुर्गा सप्तशती कहा जाता है।