समुद्र मंथन का साक्षी है मंदार पर्वत

समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से कई महत्वपूर्ण वस्तुएं बाहर निकली थी। देवतओं तथा राक्षसों ने समुद्र मंथन के लिए शेषनाग और एक पहाड़ का सहारा लिया था। जिस पहाड़ की सहायता से समुद्र मंथन किया गया था। वहां आज भी समुद्र मंथन के निशान देखे जा सकते हैं।

यह पर्वत मंदार के नाम से जाना जाता है और यह बिहार के बांका जिले में स्थित है। आइए जानते हैं इस पर्वत से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

मन्दार पर्वत का उल्लेख पुराण और महाभारत में भी मिलता है।मंदार पर्वत को इस नाम के अलावा मंदराचल पर्वत के नाम से भी उल्लेखित किया गया है।

मंदार पर्वत को शेषनाग के साथ लपेटा गया था ताकि समुद्र मंथन किया जा सके। समुद्र मंथन के दौरान अमृत और विष के अलावा दूसरी कई वस्तुएं प्राप्त हुई थी।

भगवान विष्णु ने मधुकैटव नाम के एक खतरनाक राक्षस को मारकर मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था ताकि वह बाद में लोगों को परेशान न करे।

पर्वत पर रस्सी के ऐसे निशान दिखाई देते हैं जो गवाही देते हैं कि मंदार पर्वत को ही समुद्र मंथन में मथनी के रूप में प्रयोग किया गया था। यहां समुद्र मंथन को दर्शाती एक मूर्ति भी है।

मंदार पर्वत के पास एक पापहरणी नाम का तालाब है। एक पौराणिक कथा के अनुसार मकर सक्रांति के दिन एक चौल वंशीय राजा ने इस तालाब में स्नान किया था। यहां स्नान करने से उनका कुष्ठ रोग दूर हो गया था। इसलिए इसका नाम पाप हरणी तालाब पड़ गया। इस तालाब को ‘मनोहर कुंड के नाम से जाना जाता है।

पापहरणी तालाब के बीचों बीच लक्ष्मी-विष्णु मंदिर भी स्थित है। जहां मकर सक्रांति के उपलक्ष्य पर मेला भी लगता है।

राक्षस मधुकैटव ने भगवान विष्णु से वचन लिया था कि वे हर वर्ष उसे दर्शन देने के लिए मंदार पर्वत आयेंगे। इसलिए भगवान विष्णु की प्रतिमा को हर वर्ष मंदार पर्वत तक यात्रा करवाई जाती है।

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