लंका युद्ध जीतने के बाद श्री राम का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। राज्याभिषेक के बाद देवी सीता को हनुमान जी पर वात्सल्य प्रेम उमड़ा और उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वह उन्हें अपने हाथों से खाना बना कर खिलाना चाहती हैं।
सीता जी की यह बात सुनकर हनुमान जी बेहद प्रसन्न हुए। सीता जी को वह अपनी माता मानते थे। इसलिए माता सीता के हाथ का खाना उनके लिए सौभाग्य की बात थी। माता सीता ने हनुमान जी के लिए बहुत सारे व्यंजन बनाए और उन्हें अपने हाथों से खाना परोसा।
परन्तु हनुमान जी की भूख मिट ही नही रही थी। उन्हें जो कुछ भी परोसा जाता वह झट से खत्म हो जाता था। सीता माँ की रसोई का खाना भी खत्म होने वाला था। परन्तु हनुमान जी की भूख शांत होने का नाम ही नही ले रही थी। यह देखकर सीता माँ चिंतिति हो गयी कि अगर रसोई में खाना समाप्त हो गया तो वह हनुमान जी को क्या खिलाएंगी।
अपनी समस्या के समाधान के लिए माता सीता लक्ष्मण जी के पास गयी। माता सीता की समस्या सुन कर लक्ष्मण जी ने कहा हनुमान रुद्र के अवतार हैं, इनको भला कौन तृप्त कर सकता है।
लक्ष्मण जी ने तुलसी का पत्ता लिया और उस पर श्री राम का नाम लिख दिया और वह पत्ता हनुमान जी के भोजन में डाल दिया। वह पत्ता मुंह में जाते ही हनुमान जी की भूख शांत हो गयी। थाली में बचे अन्न को अपने पूरे शरीर में मल कर हनुमान जी खुशी से नृत्य करते हुए राम नाम का कीर्तन करने लगे।