लेपाक्षी मंदिर का इतिहास रामायण से जुड़ा हुआ है। लेपाक्षी आंध्रप्रदेश राज्य के अनंतपुर में स्थित एक छोटा सा गाँव है। पौराणिक कथायों के अनुसार जब रावण देवी सीता का अपहरण कर उन्हें अपने साथ लेकर जा रहा था, उस समय रावण का सामना जटायु से हुआ। दोनों के बीच युद्ध के दौरान जटायु घायल होकर धरती पर गिर गया। जब भगवान राम देवी सीता को तलाशते हुए वहां पहुंचे तो उन्होंने जटायु को देख कर कहा ‘ले पाक्षी’ यानी की उठो पक्षी। ले पाक्षी एक तेलगु शब्द है।
मंदिर के परिसर में एक विशाल पैर की आकृति धरती पर अंकित हैं, जिसे भगवान राम के पैर का निशान मान कर पूजा जाता है।इस मंदिर में कुल 70 खम्बे हैं और आश्चर्य की बात यह है कि यह मन्दिर इन खंभो के सहारे खड़ा है जबकि खंभे हवा में झूल रहे हैं। झूलते हुए खंभो के कारण इसे हैंगिंग टेम्पल कहा जाता है।
मान्यता है कि इन खंभो के नीचे से कपडा निकालने से सुख सृमद्धि बढ़ती है और मनोकामना पूरी हो जाती है।
कुछ लोगों का मानना है कि यह मंदिर 1583 में विजयनगर के राजा के लिए काम करने वाले दो भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने बनाया था। परन्तु कुछ लोगों के अनुसार इसे ऋषि अगस्तय ने बनाया था। इस मंदिर में शिव, विष्णु और वीरभद्र के पूजास्थल मौजूद हैं।
लेपाक्षी मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी की एक विशाल प्रतिमा है।यह प्रतिमा 8. 23 मीटर(27 फ़ीट) लम्बी तथा 4.5 मीटर(15 फ़ीट) ऊंची है। यह प्रतिमा एक ही पत्थर से बनी हुई है तथा यह एक ही पत्थर से बनी देश की सबसे विशाल मूर्तियों में से एक मानी जाती है।
वीरभद्र मंदिर के परिसर में एक ही पत्थर से बनी विशाल नागलिंग प्रतिमा भी स्थापित है जो कि संभवतया सबसे विशाल नागलिंग प्रतिमा हैं। इस काले ग्रेनाइट से बनी प्रतिमा में एक शिवलिंग के ऊपर सात फन वाला नाग फन फैलाये बैठा है।
लेपाक्षी मंदिर की दीवारों पर देवी-देवतओं, महाभारत तथा रामायण की कहानियां भी अंकित हैं।