बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव मे एक आलसी व्यक्ति रहता था। वह काम करने में बहुत आलस्य दिखाता था। परन्तु वह अपने गुरु का बहुत सम्मान करता था। वह गुरु भी अपने शिष्य से बहुत स्नेह करते थे। परन्तु वह अपने शिष्य की आज के काम को कल के लिए छोड़ देने की आदत से चिंतित थे। कोई भी गुरु अपने शिष्य के लिए यह नही चाहेगा कि उनका शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित हो जाए।
आलस्य व्यक्ति को दूसरों पर निर्भर होने के लिए मजबूर कर देता है। ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है। वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है, तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता। यहाँ तक कि अपने पर्यावरण के प्रति भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा दिए गए सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है।
अपने शिष्य की यह आदत सुधारने के लिए गुरु जी ने एक योजना बनाई। एक दिन गुरु जी ने अपने शिष्य को अपने पास बुलाया और एक काले पत्थर का टुकड़ा उसे देते हुए कहा कि यह एक जादुई पत्थर का टुकड़ा है। किसी भी लोहे की वस्तु के साथ इसका स्पर्श होते ही वह सोने की बन जाती है। मैं दो दिन के लिए तुम्हे यह टुकड़ा देकर बाहर जा रहा हूँ। परन्तु याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे तुमसे वापिस ले लूँगा।
वह जादुई पत्थर का टुकड़ा पा कर शिष्य बेहद प्रसन्न था। परन्तु उसने अपना पहला दिन यह सोचने में व्यर्थ कर दिया कि इस पत्थर की सहायता से अब वह अमीर बन जायेगा। अब उसके पास इतना धन होगा कि वह अपने कामों के लिए बहुत से नौकर रख लेगा। यह सब सोचने में ही उसका पूरा दिन निकल गया। दूसरे दिन उसने मन में पक्का विचार कर लिया कि आज वह गुरु जी द्वारा दिए गए काले पत्थर का लाभ जरूर उठाएगा। उसने बाजार से लोहे का सामान लाने का निश्चय किया, जिसे वह पत्थर की सहायता से सोने में बदल देगा।
परन्तु फिर उसका आलस उसके समक्ष आ गया और उसने सोचा कि अभी सूर्यास्त होने में बहुत समय है तो वह बाद में बाजार से सामान ले आएगा। यही सोच कर वह अपना भोजन ग्रहण करके सो गया। जब वह सो कर उठा, तो सूर्यास्त होने वाला था।
अपने हाथ से अमीर होने का अवसर जाता देख वह जल्दी से बाजार की और भागने लगा, पर रास्ते में उसे गुरु जी मिल गए। उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा।लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस शिष्य का अमीर होने का सपना चूर-चूर हो गया।
इस घटना से शिष्य को बहुत बड़ी सीख मिल गयी। अब वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है। उसने प्रण किया कि अब वह कभी आज के काम को कल पर नही छोड़ेगा।
हमें भी अपने जीवन में ऐसे अनेक अवसर मिलते हैं। परन्तु अपने आलस के कारण हम उनका फायदा नही उठा पाते। हमारा आज के काम को कल पर टालना, हमारी सफलता से हमें दूर ले जाता है। क्योंकि अवसर किसी का इन्तजार नही करते। इसलिए जब भी हमें कोई अवसर मिले तो हमें आलस छोड़कर उसका फायदा उसी समय उठाना चाहिए।