हिन्दू धर्म में रुद्राक्ष की माला धारण करना बहुत शुभ माना जाता है। क्या आप जानते हैं कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई? रुद्राक्ष का रहस्य भगवान शिव से जुड़ा हुआ है।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार भगवान शिव ने संसार के कल्याण के लिए अपने मन को वश में कर के सैंकड़ों सालों तक तप किया। एक दिन तप के दौरान उनका मन बेहद दुखी हो गया। जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनकी आँखों से आंसू बहने लगे। जब उनकी आँखों से निकली आंसू की बूंदे धरती पर गिरी तो उन बूंदो से रुद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हुआ।
माना जाता है कि यदि शिव-पार्वती को प्रसन्न करना हो तो रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
रुद्राक्ष एक गुठली वाला जंगली फल है जो भारत में हिमालय में पाया जाता है। इसका फल जामुन के समान नीला तथा बेर के स्वाद-सा होता है। रुद्राक्ष का आकार अलग-अलग होता है तथा इनके रंग भी अलग-अलग होते हैं। रुद्राक्ष का फल सूखने पर उसके ऊपर से छिलका उतार लिया जाता है तथा इसके अंदर की गुठली प्राप्त की जाती है। यही असल में रुद्राक्ष होता है। रुद्राक्ष के ऊपर 1 से लेकर 14 धारियां बनी होती हैं, इन्हें मुख कहा जाता है।
रुद्राक्ष को आकार तथा रंगों के हिसाब से अलग अलग श्रेणियों में बांटा गया है।
आकार के आधार पर रुद्राक्ष को तीन श्रेणियों में बांटा गया है।
उत्तम श्रेणी- जो रुद्राक्ष आकार में आंवले के फल के बराबर हो वह सबसे उत्तम माना गया है।
मध्यम श्रेणी- जिस रुद्राक्ष का आकार बेर के फल के समान हो वह मध्यम श्रेणी में आता है।
निम्न श्रेणी- चने के बराबर आकार वाले रुद्राक्ष को निम्न श्रेणी में गिना जाता है।
रंगों के आधार पर रुद्राक्ष को 4 श्रेणियों में बांटा गया है।
सफेद रंग का रुद्राक्ष ब्राह्मण वर्ग का, लाल रंग का क्षत्रिय, मिश्रित वर्ण का वैश्य तथा श्याम रंग का शूद्र कहलाता है।