श्री कृष्ण तथा राधा के प्रेम से कोई अनजान नही है। उनके जीवन से जुड़े ऐसे अनेक प्रसंग है जो हमें राधा कृष्ण के अटूट प्रेम की याद दिलाते हैं। उनमें से एक प्रसिद्ध प्रसंग चरणामृत से जुड़ा हुआ है|
इस पौराणिक कथा के अनुसार एक बार श्री कृष्ण बहुत बीमार हो गए। किसी भी वैद की कोई भी दवाई तथा जड़ी बूटी उन पर कोई असर नही कर रही थी। तब श्री कृष्ण ने गोपियों से कहा कि एक उपाय है जिस से वह ठीक हो सकते है। श्री कृष्ण ने गोपियों से उन्हें चरणामृत पिलाने को कहा। यह उपाय सुन कर गोपियाँ दुविधा में पड़ गयी। श्री कृष्ण का मानना था कि यदि वह अपने परम भक्त, जो कि उनसे बहुत प्रेम करते हैं अगर श्री कृष्ण उनका चरणामृत ग्रहण कर लें तो वह निश्चित ही ठीक हो जायेंगे।
गोपियों के लिए श्री कृष्ण बेहद महत्वपूर्ण थे। वे सभी उनसे दिल से प्रेम करती थी। परन्तु चरणामृत पिलाने वाली बात सुनकर वे चिंता में पड़ गयी क्योंकि उन्हें इस उपाय के निष्फल होने की चिंता सता रही थी।
गोपियों को भय था यदि उन्होंने अपने पाँव धोने से बना चरणामृत बना कर श्री कृष्ण को दे दिया तो वह परम भक्त का कार्य तो कर देंगी। परन्तु यदि किसी कारण कान्हा जी ठीक ना हुए तो उन्हें नर्क भोगना पड़ेगा।
यही सोच कर कोई भी गोपी आगे नही आ रही थी। जब राधा जी वहां आई तो कृष्ण जी को बीमार देख कर उन्हें बहुत दुःख हुआ। यह देखकर राधा जी की स्थिति ऐसी थी कि मानो उनके प्राण ही निकल गये हों।
गोपियों ने राधा जी को श्री कृष्ण द्वारा सुझाया गया चरणामृत वाला उपाय बताया। उपाय सुन कर राधा जी ने समय बर्बाद किये बिना स्वयं के पांव धो कर चरणामृत तैयार कर दिया।
राधा जी को पता था कि वह क्या कर रही हैं। गोपियों के मन में जो नर्क जाने का भय था। वह राधा जी के मन में भी था। परन्तु उनके लिए उस समय केवल श्री कृष्ण का स्वस्थ होना सबसे अहम था। श्री कृष्ण को स्वस्थ करने के लिए वह नर्क जाने को भी तैयार थी।
श्री कृष्ण ने राधा जी द्वारा बना चरणामृत ग्रहण किया और थोड़ी देर में वह स्वस्थ हो गये। क्योंकि राधा जी के प्रेम तथा भक्ति में सच्ची निष्ठा थी। उन्होंने श्री कृष्ण को निरोग देखने के लिए अपने भविष्य तक की चिंता न की।