रामायण का जब भी जिक्र होता है तो उसमे राम, लक्ष्मण, रावण, कुम्भकरण, विभीषण, शूर्पनखा के साथ साथ मेघनाद का भी नाम जहन में अवश्य आता है| मेघनाद रावण का पुत्र था और अपने पिता रावण की तरह ही एक अत्यंत ही निर्दयी और क्रूर योद्धा भी था|
मेघनाद को इन्द्रजीत के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उसने देवराज इंद्र पर विजय प्राप्त की थी| उसकी गर्जना बड़ी भयंकर थी जब वो गरजता था तो ऐसा प्रतीत होता था की मेघ गर्जना कर रहे हो इसी वजह से उसका नाम मेघनाद पड़ा था| सारी दुनिया पर विजय प्राप्त करने वाला मेघनाद जब युद्ध भूमि में राम और लक्ष्मण के विरुद्ध रावण की तरफ से युद्ध करने आया तो उसने राम की वानर सेना को गाजर मूली की तरह काटना शुरू कर दिया| जब श्री राम ने देखा की मेघनाद उनकी सेना का संहार करता जाया रहा है तो उन्होंने लक्ष्मण को उसका वध करने का आदेश दिया|
उनकी आज्ञा पाते ही लक्ष्मण ने अपने तरकश के घातक बाणों के प्रहार से मेघनाद का वध कर दिया और उसका शीश काट कर ले आये| और उसकी एक भुजा को बाण की सहायता से उसके महल में बैठी उसकी अर्धांगिनी सुलोचना के पास पहुंचा दिया| सुलोचना ने जब अपने पति की भुजा देखि तो उसे भरोसा नहीं हुआ की उसके पति की मृत्यु हो चुकी है|
उसने उस भुजा को देखते हुए कहा की अगर वास्तव में ये मेरे पति की भुजा है तो ये हरकत कर अपना प्रमाण देगी इसके इतना बोलते ही भुजा में हरकत हुई और उस कटी हुई भुजा ने लक्ष्मण के बारे में लिखा की उस शूरवीर के हाथों मेरी मृत्यु हो चुकी है| तब जाकर उसे भरोसा हुआ की उसके पति की मृत्यु हो चुकी है और इस सत्य को जानते ही वो विलाप करने लगी|
विलाप करती हुई सुलोचना अपने ससुर और मेघनाद के पिता रावण के पास पहुंची और उस कटी हुई भुजा को दिखा कर अपने पति का सर लाने की गुजारिश की और उसके साथ सती होने की इच्छा प्रकट की| इस खबर को सुनते ही रावण भी शोक में डूब गया और सुलोचना को इन्तेजार करने को कह कर रणभूमि की ओर चल पड़ा|
परन्तु सुलोचना रावण की बातों से बिलकुल भी आश्वश्त नहीं हुयी और मंदोदरी के समक्ष जाकर अपनी इच्छा प्रकट की तब मंदोदरी ने उसे श्री राम के सम्मुख जाने का निर्देश दिया और कहा की श्री राम बड़े दयालु हैं और वो तुम्हारी मांग अवश्य पूरी करेंगे|
सुलोचना श्री राम के पास गयी तो विभीषण ने श्री राम को बताया की ये मेघनाद की पत्नी है अपने पति के शीश के साथ सती होना चाहती है| सुलोचना ने श्री राम से अपने पति के शीश की मांग की और अपनी सारी कथा सुनाई उसकी कथा सुनकर भगवान् राम ने कहा की मैं मेघनाद को अभी जीवित कर देता हूँ| इसपर सुलोचना ने मना कर दिया और कहा की इस जीवन में जितने दुःख भोगने थे वो भोग चुके और आपके हाथों मृत्यु पाकर उन्हें परम पद की प्राप्ति होगी| भगवान् राम की आज्ञा पाकर सुग्रीव मेघनाद का सर ले तो आये परन्तु उन्हें ये विश्वास नहीं हो पा रहा था की मेघनाद के कटे हुए हाथ ने लक्ष्मण के बारे में लिखा था| अतः उन्होंने सुलोचना से कहा की मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं हो पा रहा परन्तु मैं इसे तभी सत्य मानूंगा जब ये कटा हुआ शीश हंसेगा| ये सुलोचना के सतीत्व की परीक्षा की घडी थी और इतना सुनते ही मेघनाद का कटा हुआ सर जोर से हंसने लगा और और सुलोचना की बात पर सबको भरोसा हो गया|