ब्रह्मा जी को सृष्टि का निर्माता कहा जाता है। सृष्टि के निर्माण का कार्य पूरा करने के लिए आदि शक्ति ने अपने स्वरुप से सरस्वती को उत्पन्न करके ब्रह्मा जी को पत्नी स्वरुप भेंट किया। सृष्टि निर्माण का कार्य पूरा करने के बाद ब्रह्मा जी एक पवित्र उद्देश्य के लिए पृथ्वी पधारे।
पृथ्वी पर पहुँचने के बाद ब्रह्मा जी ने सबसे उत्तम मुहूर्त में एक यज्ञ का आयोजन किया। परन्तु यज्ञ को सम्पूर्ण करने के लिए एक समस्या थी कि बिना पत्नी के यज्ञ पूर्ण नही हो सकता था। इस समस्या के कारण यज्ञ का शुभ मुहूर्त व्यर्थ जाता तथा ब्रह्मा जी ऐसा बिलकुल नही चाहते थे। इसलिए संसार के कल्याण हेतु उन्होंने एक कन्या से विवाह कर लिया जो बुद्धिमान होने के साथ साथ शास्त्रों का भी ज्ञान रखती थी।
शास्त्रों तथा पुराणों में इस कन्या का नाम गायत्री बताया गया है। गायत्री से विवाह करने के पश्चात ब्रह्मा जी ने यज्ञ करना आरम्भ कर दिया। उधर देवी सरस्वती ब्रह्मा जी को तलाशते हुए पृथ्वी पहुंची। तीर्थ नगरी पुष्कर में पहुँच कर उनकी तलाश समाप्त हुई। वहां पहुँच कर देवी सरस्वती ने देखा कि ब्रह्मा जी गायत्री के साथ यज्ञ कर रहे थे।
ब्रह्मा जी को किसी दूसरी स्त्री के साथ यज्ञ में बैठे देख देवी सरस्वती बहुत क्रोधित हुई। क्रोध में उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि पृथ्वी के लोग ब्रह्मा जी को भुला देंगे और कभी इनकी पूजा नही होगी।
अन्य देवताओं के समझाने पर देवी सरस्वती का क्रोध कम हुआ। क्रोध कम होने पर सरस्वती जी ने कहा कि ब्रह्मा जी केवल पुष्कर में पूजे जाएंगे। इसलिए पृथ्वी में केवल पुष्कर में ही ब्रह्मा जी का प्राचीन मन्दिर है।