शुक्रवार मां वैभव लक्ष्मी व्रत’ को ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है। इस व्रत को जो कोई सदभावना पूर्वक करता है एवं ‘वैभवलक्ष्मी व्रत कथा’ पढता है अथवा सुनता है और दूसरों को भी सुनाता है तो मां लक्ष्मी देवी उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करती है और उसकी सदैव रक्षा करती है। वैभवलक्ष्मी बड़ा सीधा-साधा व्रत है और इस व्रत की पूजा विधि भी बड़ी सरल है।
व्रत के दिन प्रातःकाल उठकर स्नानादि करके ‘जय माँ लक्ष्मी’, ‘जय माँ महालक्ष्मी’ इस प्रकार का रटन मन ही मन करते हुए माँ वैभवलक्ष्मी को पूरे श्रद्दाभाव से स्मरण करना चाहिए।
11 या 21 शुक्रवार व्रत रखने का संकल्प करके शास्त्रीय विधि अनुसार पूजा-पाठ और उपवास करना चाहिए।
व्रत की विधि शुरू करने से पहले लक्ष्मी स्तवन का एक बार पाठ करना चाहिए।
पूजा वेदी पर श्री यन्त्र जरुर स्थापित करना चाहिए क्योंकि माता लक्ष्मी को श्री यन्त्र अत्यंत प्रिय है।
व्रत करते समय माता लक्ष्मी के विभिन्न स्वरुप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री विजयलक्ष्मी, श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री धान्यलक्ष्मी, एवं श्री सन्तानलक्ष्मी तथा श्रीयन्त्र को प्रणाम करना चाहिए।
व्रत के दिन हो सके तो पुरे दिन का उपवास रखना चाहिए। अगर न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन करके शुक्रवार करना चाहिए।
शुक्रवार वैभवलक्ष्मी व्रत में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बेहद जरुरी होता है जैसे की अगर शुक्रवार के दिन आप प्रवास या यात्रा पर गए हो तो वह शुक्रवार छोड़कर उसके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिए।
यह व्रत अपने ही घर पर करना चाहिए।