शीतलाष्टमी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनायी जाती है। इसमें शीतला माता का व्रत और पूजन किया जाता है। शीतला अष्टमी व्रत को करने से व्यक्ति के सारे परिवार में दाह ज्वर, पीत ज्वर, दुर्गन्ध से युक्त फोड़े, आंखों के सारे रोग, माता की फुंसियों के निशान तथा शीतलाजनित सारे दोष ठीक हो जाते हैं। यह होली के कुछ दिनों बाद आती है |
इस दिन माँ शीतला को ठंडी और बासी चीजे भोग लगाई जाती है | बासी चीजो से मतलब एक दिन पहले सप्तमी को बनाई गयी चीजो से है |
इस दिन पुरे दिन घर में कुछ भी नही पकाया जाता है |
क्या क्या बनाये शीतलाष्टमी के एक दिन पहले माँ के भोग के लिए
पुआ , पुड़ी , छाछ की राबड़ी , गुंजिया , सिवाली , मिर्च के तपोले , तलने वाले खिलोने , बेसन की चक्की , कढ़ी, चने की दाल, हलुवा,दही और अन्य ठंडी चीजे जिन्हें आप २ दिन तक खाने में काम ले सकते है |
माँ शीतला :
माँ शीतला की सवारी है गधा और इनके हाथ में झाड़ू है | दाह ज्वर, पीत ज्वर, दुर्गन्ध से युक्त फोड़े, आंखों के सारे रोग, माता की फुंसियों के निशान से बचाव करती है |
क्यों खाया जाता है बासा खाना इस दिन :
शीतलाष्टमी मौसम परिवर्तन का दिन होता है | माँ शीतला को खसरा , माता निकलने , बोदरी आदि रोगों के निजात की देवी माना जाता है | इन बीमारियों में ठंडी और बासी चीजे ज्यादा लाभप्रद है | गर्म और छोकन वाली चीजे इन बीमारियों को ज्यादा बढाती है | इसी कारण माँ को एक दिन पहले बनी हुई चीजो का भोग लगाकर उसी दिन यह सब चीजे खाई जाती है |
महत्त्वपूर्ण तथ्य
शीतलाष्टमी के दिन घर में चुल्ला नही जलाना चाहिए और बस बासी खाना ही खाना चाहिए |
गर्म पानी से नही नहाना चाहिए |
शीतला माता की कथा सुने और हो सके तो व्रत करे |
रात्रि में हो सके तो किसी वृद्धा को घर बुलाकर भोजन कराये |
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