शीतला माता को चेचक रोग की देवी बताया गया है| आपने सुना भी होगा की उस व्यक्ति या बच्चे के माता निकल गयी, और शरीर पर बहुत सारी फुंसियां हो गयी|
1) शीतला माता के चार हाथ बताये गये है जिसमे झाड़ू, कलश, नीम के पत्ते और सूप है| इन चारो का अपना महत्त्व है| चेचक के रोगी को ठंडा जल प्रिय है अत: माँ के हाथ में कलश है| झाड़ू से फोड़े फट जाते है, नीम के पत्ते फोड़ो को पकने नही देते| सूप से रोगी को हवा मिलती है और गर्दभ की लीद से फोड़े जल्दी ठीक होते है|
2) शीतला माता का वाहन गर्दभ (गधे) को बताया गया है|
3) इनका मुख्य दिन चैत्र मास की कृष्ण अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के नाम से जाना जाता है।
4) मौसम बदलने से होने वाले रोग जैसे दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के समस्त रोग से यह माता बचाव करती है| यह स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। और सफाई का ध्यान रखने से यह रोग दूर होते है|
5) अष्टमी को एक दिन पहले का बना खाना खाया जाता है और वही बांसा खाना माँ शीतला को भोग भी लगाया जाता है| कहते है इसी से माँ प्रसन्न होती है और आपके घर को रोग मुक्त करती है|
माता शीलता का मुख्य मंत्र :
” वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।। ”
अर्थात
मैं शीतला माता की वंदना करता हूँ जो गर्दभ पर विराजित दिगम्बरा है, हाथो में कलश और झाड़ू धारण करने वाली माँ मस्तिक पर सूप से सुशोभित है|