वैष्णों देवी भव्य और पूजनीय स्थलों में से एक है जहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए आते है| पौराणिक कथाओं के चलते वैष्णों देवी के सन्दर्भ में कई कथाएं प्रचलित है|
आइए जानते है माता वैष्णों की सबसे प्रसिद्ध प्रचलित कथा:
इस कथा के अनुसार मान्यता है कि माँ वैष्णों का सबसे अधिक प्रिय भक्त पंडित श्रीधर था, जो की कटरा से 2 किलोमीटर दुरी पर स्थित हंसाली गांव में रहता था| श्रीधर हर पल दुखी रहता था क्योंकि वह संतान से सुख से वंचित था| जिन दिनों नवरात्री चल रहे थे उस समय की बात है श्रीधर ने नवरात्रि के पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को भोजन के लिए बुलाया था| उनमे से एक कन्या के वेश में माता वैष्णों भी उसके घर पहुंची| पूजन होने के पश्चात सभी कन्याएं अपने घर के लिए प्रस्थान कर गई परन्तु माता वैष्णों वहां से नहीं गई| माता ने श्रीधर को बोला की आप सभी गांव वालो को अपने घर भंडारे पर आने का आमंत्रण भेजिए, श्रीधर ने ऐसा ही किया|
सभी गांववालों के साथ साथ भैरवनाथ तथा उनके शिष्यों को भी निमंत्रण मिला| सभी गांव वासी श्रीधर के घर भंडारे के लिए इक्कठे हुए और कन्या के वेश में माता वैष्णो देवी ने सभी को भोजन परोसना शुरू किया| ऐसा करते हुए वह भैरवनाथ के समीप गई और उन्हें भोजन परोसने लगी| तभी वह बोल पड़ा कि मझे खीर-पूरी नहीं बल्कि मांस और शराब का सेवन करना है| कन्या स्वरुप माँ ने उसे समझाया की ब्राह्मण के घर मांसाहारी भोजन नहीं मिलता, परन्तु वह अपनी बात से नहीं हटा|
माँ वैष्णों भैरवनाथ के इरादे जान चुकी थी जब उसने कन्या रुपी माँ का हाथ पकड़ना चाहा| तब वह कन्या वहां से त्रिकोट पर्वत की ओर गई, भैरवनाथ उनके पीछे पीछे भागा| प्रचलित कथा के अनुसार कहा जाता है कि माँ की रक्षा करने हेतु रामभक्त हनुमान उनके साथ ही थे| हनुमान जी की प्यास भुजाने के लिए माता ने धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक झरना निकाला और उसी जल से माँ ने अपने बाल धोए| तब से इस जगह को ‘बाणगंगा’ के नाम से जाना जाता है| यहाँ के पवित्र जल से स्नान करने से भक्तों की सारी थकावट और तकलीफें दूर हो जाती हैं|
भैरव से बहगते भागते माता ने एक गुफा में नौ महीने तक तपस्या की| माना जाता है की माता यहा नौ महीने उसी प्रकार रहीं, जिस प्रकार एक शिशु अपनी माता के गर्भ में रहता है| आज यह पवित्र गुफा ‘अर्धकुँवारी’ के नाम से जानी जाती है|
अर्धकुँवारी से पहले माता की चरण पादुका भी है| यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते पीछे मुड़कर भैरवनाथ को देखा था|
गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया और माता ने भैरवनाथ को लौट जाने को कहा| परन्तु वह नहीं माना| माता गुफा के अंदर चली गई, गुफा के बाहर खड़े हनुमानजी ने माता की रक्षा के लिए भैरव से युद्ध किया| भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी जब हनुमान जी युद्ध में असफल होने लगे, तो माता वैष्णों ने महाकाली का रूप धारण कर भैरवनाथ का अंत किया, और उसका कटा हुआ सिर भवन से 8 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा| अब उस स्थान को भैरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है|
जिस गुफा में माता वैष्णों ने भैरव का वध किया वहां माँ काली, माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी पिंडी के रूप में विराजमान हैं| इन तीनों के रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है|
भैरवनाथ के वध के पश्चात उसे अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी| ऐसा कहा जाता है कि माता वैष्णों देवी ने भैरवनाथ की क्षमा स्वीकार करते हुए उसे वरदान दिया कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा|