हिन्दू धर्म की प्रचलित कथा के अनुसार भगवान शिव के तांडव से हो ब्रह्माण्ड में हो रहे हाहाकार से देवलोक को बचाने के लिए विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के 51 टुकड़े किए थे और वह पृथ्वी पर जिस जिस जगह गिरे वहां शक्तिपीठ की उतपत्ति हुई| ज्वाला जी उन 51 शक्तिपीठों में से एक है जहां देवी सती की जीभ गिरी थी| फिर यह ज्वालामुखी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ| धरती पर नौ जगहों से ज्योतियां निकल रही हैं जिन्हें महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, अम्बिका, सरस्वती, हिंगलाज, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है|
ज्वाला जी मंदिर का निर्माण:
ज्वालामुखी माता का मंदिर का निर्माण, जो की हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है, राजा भूमि चंद द्वारा किया गया था| इसके पश्चात् 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने इस मंदिर का पूर्ण निर्माण कराया था| यह मंदिर जोता वाली और नागरकोट के नाम से प्रसिद्ध है|
कैसे ज्वालामुखी देवी ने अकबर का अभिमान चूर चूर किया, आइए जानते है इसके पीछे की कहानी:
प्राचीन काल से इस भव्य मंदिर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी होती रहती है| प्रचलित कथा के अनुसार ऐसे ही माता के परम भक्त ध्यानु अपने साथ हजारों की संख्या में भक्तों की टोली को माता के अदभुद एवं दिव्य मंदिर के दर्शन कराने के लिए जा रहा था| उस समय दिल्ली में मुग़ल सम्राट अकबर का शासन था, जैसे ही टोली दिल्ली में प्रवेश हुई, उन्हें सम्राट अकबर के सामने लाया गया और एक साथ हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ देखकर अकबर आश्चयचकित हो गया|
हैरान हुए अकबर ने भक्त ध्यानु से पूछा कि इतना झुंड लेकर कहा जा रहे हो? ध्यानु ने बड़े ही आदर भाव के साथ उतर दिया की ज्वालामाई के दर्शन करने हिमाचल प्रदेश में ज्वालमुखी मंदिर जा रहे है|
यह सुनकर अकबर बोला कौन है यह ज्वालामाई और तुम्हें क्या मिलेगा वहां जाने से? तब ध्यानू भक्त ने उत्तर देते हुए कहा कि महाराज ज्वालामाई सम्पूर्ण संसार की पालनहरता है| जो भक्त सच्चे मन से प्राथना करता है माता उसकी प्राथनाओं को स्वीकार करके उन्हें आशीर्वाद देती है| सबसे खास बात वहां की ये है कि उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है| प्रतिवर्ष हम उनके दर्शन के लिए जाते हैं|
माता की महत्वता के बारे में इतना सब कुछ भक्तों से सुनने के बाद अकबर बोला चलो तुम्हारी पूजा अर्चना का क्यों न इम्तहान लिया जाए| ज़रा हम भी तो देखें की देवी माता तुम्हारी इज्जत रखती है या नहीं| ऐसा बोलते ही उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया की भक्त के घोड़े की गर्दन काट दी जाए, देखते है इनकी देवी उसे दोबारा जीवन दान दे सकती है या नहीं|
यह वचन सुन ध्यानु ने अकबर से आवेदन किया और घोड़े का शरीर व गर्दन एक सुरक्षित जगह पर रखवा दिया| इसके पश्चात् ध्यानु और उसके साथी माता के दरबार जाने के लिए रवाना हो गए| वहां पहुँचकर वे रात्रि में माँ के गुणगान गाने लगे और सुबह की आरती के समय ध्यानु ने माता से प्राथना की और बोला की आप तो सब जानती है माता| मझे शक्ति देना कि अकबर की इस परीक्षा में मैं पास हो जाऊ, और मेरे घोड़े को जीवित कर देना| ध्यानु की प्रार्थना स्वीकार करते हुए माँ ने घोड़े को जीवित कर दिया|
ऐसा अद्भुद दृश्य देख अकबर की आंखे फटी रह गई और स्वयं अपनी सेना को लेकर माता के दरबार के लिए प्रस्थान कर गया| मंदिर पहुंचने के बाद भी अपनी संदेह को दूर करने के लिए पुरे मंदिर में पानी डलवाया, परन्तु माता की ज्वाला ज्योति नहीं बुझी| अंत में उसे माँ की महिमा पर विश्वास हुआ| उसने माता के लिए 50 किलो का सोने का छतर बनवाया, किन्तु माता ने वह स्वीकार नहीं किया और छतर गिर कर सोने से परिवर्तित होकर कोई अन्य पदार्थ बन गया|
इस तरह ज्वालामुखी देवी ने अकबर का घमंड दूर किया|
very nice jai mata di