महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक है कर्ण, जो की महाभारत के युद्ध में अपने भाईओं के विरुद्ध लड़ा था| कर्ण की माँ कुंती और पिता सूर्य थे, परन्तु उनका पालन पोषण एक रथ चलाने वाले व्यक्ति आधीरथ द्वारा किया गया था इसी कारणवश उन्हें सूतपुत्र कहा जाता था और उन्हें अपने अधिकारों से वंचित रहना पड़ा जिसके वे हक़दार थे| दुर्योधन का सबसे अच्छा मित्र कर्ण ही था| कर्ण की ऐसी आदत थी कि वे कभी भी किसी मांगने वाले को कुछ देने से इंकार नहीं करते थे, इसीलिए उन्हें दानवीर माना जाता था| चाहे इसके लिए उन्हें अपने प्राण भी क्यों न देने पड़े|
कर्ण के जीवन से जुड़ी कुछ बातें-
कर्ण और द्रोपदी एक दूसरे को पसंद करते थे और विवाह भी करना चाहते थे परन्तु कर्ण के सूतपुत्र होने के कारण यह विवाह संभव न हो पाया| इस कारण कर्ण पांडवों से नफरत करता था और कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों का साथ दिया था|
द्रोपदी के इंकार करने के बाद कर्ण ने अपने पिता आधीरथ की इच्छा पूर्ण करने के लिए सूतपुत्री रुषाली नाम की लड़की से शादी की, और उनकी दूसरी पत्नी का नाम था सुप्रिया|
अब जानते है कि क्यों कृष्ण भगवान ने किया अपने ही हाथों पर कर्ण का अंतिम संस्कार-
कर्ण की मृत्यु में सबसे बड़ा हाथ श्री कृष्ण का ही था क्योंकि उन्होंने ही अर्जुन को रास्ता बताया था कर्ण के वध का| युद्ध के पश्चात जब कर्ण मृत्युशय्या पर थे तो कृष्ण जी उसके समीप गए और यह जानते हुए की कर्ण दानवीर है, वे कर्ण की दानवीर होने की परीक्षा लेना चाहते थे| उस समय कृष्ण ने कर्ण से उसका सोने का दांत माँगा और कर्ण के पास रखे पत्थर से उसने अपना दांत तोड़ा और श्री कृष्ण को दे दिया तथा अपने दानवीर होने का सबूत दिया| यह सब देख कर कृष्ण जी बहुत प्रभावित हुए और प्रसन्न होकर कर्ण को बोलें मांगों कुछ वरदान|
कर्ण ने कृष्ण जी से 3 वरदान मांगे पहला यह था की वे एक गरीब सूतपुत्र होने के कारण अपने अधिकारों से हमेशा वंचित रहे और उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा| तो कर्ण चाहते थे कि अगले जन्म में कृष्ण उसके वर्ग के लोगों के हालातों में सुधार लाने का प्रयत्न करें| इसी के साथ साथ कर्ण ने दो और वरदान भी मांगे|
दूसरे वरदान में कर्ण चाहते थे कि श्री कृष्ण अगले जन्म में उसी के राज्य में जन्म लें| तीसरे वरदान में कर्ण ने माँगा की उनका अंतिम संस्कार उस जगह पर हो जहां कोई पाप ना हो|वरदान देते समय भगवान कृष्ण ने सारे वरदान आसानी से स्वीकार कर लिए, परन्तु तीसरे वरदान से भगवान कृष्ण दुविधा में आ गए और पूरी पृथ्वी पर ऐसी जगह सोचने लगे, जहाँ पाप ना हुआ हो, परन्तु भगवान कृष्ण को ऐसा कोई स्थान नहीं मिला जो पाप मुक्त हो| इसी कारण भगवान कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर किया| इस तरह दानवीर कर्ण के सभी वरदान पूर्ण हुए और वे मृत्यु के पश्चात साक्षात वैकुण्ठ धाम को प्राप्त हुए|