आंध्र-प्रदेश स्थित तिरुपति बालाजी का मंदिर विश्व का सबसे महंगा अथवा बड़ा मंदिर माना जाता है| यह भी माना जाता है कि यहां आज तक भी भगवन विष्णु वास करते हैं| आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी:-
हिन्दू धर्म के अनुसार एक बार ऋषि भृगु ने सबसे उत्तम भगवान के चुनने का मन बनाया| भ्रह्मा जी और शिव जी से संतुष्ट न हो कर वे विष्णु जी के पास वैकुण्ठ जा पहुंचे| वहां उन्होंने भगवान विष्णु की छाती पर अपने पैर से मारा, विष्णु जी ने तो उन्हें कुछ नहीं कहा परन्तु लक्ष्मी जी को यह ठीक नहीं लगा और वे वैकुण्ठ छोड़ के धरती पर आ गयीं|
उन्होंने भूमि पर पद्मावती के नाम से जन्म लिया और विष्णु जी ने श्रीनिवास के नाम से| दोनों ने वेंकेट पहाड़ी पर विवाह कर, हमेशा यहीं वास करने का निर्णय लिया और माना जाता है कि वे कलियुग या काली-युग के लोगों को बचाने, आशीर्वाद देने और मुक्ति दिलाने यहीं रुक गए| लोग इस मंदिर में आ कर शादी इसलिये करते हैं, जिससे वह जन्मो जन्म साथ रह सकें।
तिरुपति के भगवान वेंकटेश्वर एक सबसे प्रसिद्ध हिंदू देवता हैं। हर साल लाखों लोग भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए तिरुमाला की पहाड़ियों पर भीड़ लगाते हैं। माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। भगवान वेंकटेश्वर को बालाजी, श्रीनिवास और गोविंदा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान वेंकटेश्वर, भारत के सबसे अमीर देवताओं में से एक माने जाते हैं।
भगवान वेंकटेश्वर एक बहुत शक्तिशाली देवता के रूप में जाने जाते हैं। ऐसे कहा जाता है कि यदि कोई भक्त कुछ भी सच्चे दिल से मांगता है, तो भगवान उसकी सारी मुरादें पूरी करते हैं। वे लोग जिनकी मुराद भगवान पूरी कर देते हैं, वे अपनी इच्छा अनुसार वहां पर अपने बाल दान कर के आते हैं।
तिरुपति बालाजी के मंदिर को भूलोक वैकुण्ठ भी कहा जाता है| भगवान बालाजी को कलियुग प्रत्यक्ष देवम भी कहा जाता है| बालाजी के बारे में कई पुराणों में लिखा है कि धरती पर श्री वेंकेटेश्वर मंदिर जैसी उत्तम जगह कोई नहीं है और ना ही बालाजी जैसा कोई भगवान|
वेंकटाद्री समस्थानं ब्रह्माण्डे नस्ती किञ्चना
वेंकटेशा समो देवो ना भूतो ना भविष्यति
तिरुपति बालाजी का इतिहास
तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में लोग यहां आते हैं। समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थिम तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं।
माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान को अपना साम्राज्य घोषित किया, परंतु 15वीं सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। 15वीं सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति ‘तिरुमाला-तिरुपति’ के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ|