एक बार की बात है जब देवताओं और दानवों के सारे मतभेद समाप्त हो गए थे| तभी धरती पर क्षत्रियों का राज था सत्ता और ताकत के मद में चूर क्षत्रिय राजा निरंकुश होते जा रहे थे| उस समय सशत्रबाहू नामक क्रूर शाशक का राज था उसके बारे में प्रचलित था की उसने लंकापति रावण को भी हराया था|
सशत्रबाहू एकदिन अपने पुरे काफिले के साथ राज्य का भ्रमण कर रहा था तभी रास्ते में उसे ऋषि वशिष्ट का आश्रम दिखा| आश्रम के समीप पहुँचते ही पता नहीं उसे क्या हुआ उसने बिना सोचे समझे और बिना किसी कारण के सारा आश्रम पानी से भरवा दिया|
जब ऋषि ने ये देखा तो उससे ऐसा करने का कारण पूछा जवाब देने की जगह सशत्रबाहू निर्लज्जता पूर्वक हंसने लगा| इसपर क्रोधित होकर ऋषि वशिष्ट ने उसे डांट लगाई इसपर उसने अभिमानवश उत्तर दिया की हे निर्बल ब्राह्मण मैं चाहूँ तो अभी तुम्हे मार सकता हूँ|इसपर क्रोधित हो कर ऋषि वशिष्ठ ने सशत्रबाहू को श्राप दिया की एक ब्राह्मण ही तुम्हारे घमंड को तोड़ेगा|
सशत्रबाहू को भगवान् दत्तात्रेय से वरदान प्राप्त था की युद्ध के समय उसके हज़ार हाँथ हो जायेंगे और इसी वजह से उसका नाम सहस्त्रबाहू पड़ा| चूँकि महर्षि वशिष्ट के श्राप की वजह से उसका और उसके पुरे कुल का विनाश निश्चित था और परशुराम ही वो बाहुबली ब्राह्मण थे जिनके हाथों ये कार्य होना था|
परशुराम ऋषि जमद्व्ग्नी और देवी रेणुका के पुत्र थे| परशुराम को भगवान् शिव से कई वरदान प्राप्त थे जिनमे अश्त्र शस्त्र और सारे वेदों का ज्ञान प्रमुख था साथ ही मन की गति से कहीं भी आने जाने की शक्ति थी|
एक बार सहस्त्रबाहू ने ऋषि जमद्व्ग्नी से कामधेनु मांगी इसपर ऋषि ने कहा की ये गौ शप्तऋषियों की गाय है और उन्हें इसकी सेवा करने का अवसर कुछ ही दिनों के लिए मिला है| इतना सुनते ही सहस्त्रबाहू क्रोध से पागल हो गया और बलपूर्वक कामधेनु को लेकर अपने महल की ओर चल पड़ा|
परन्तु परशुराम को जब ये बात पता चली तो उन्होंने सहस्त्रबाहू को रास्ते में रोक कर गाय वापस देने को कहा| सहस्त्रबाहू ने कहा तुम मेरी प्रजा हो और प्रजा की हर वस्तु पर राजा का अधिकार है अगर हिम्मत है तो मुझसे युद्ध करो और जीत कर गाय वापस ले जाओ|
परशुराम को भगवान् शिव से वरदान प्राप्त था की कोई भी क्षत्रिय उन्हें हरा नहीं पायेगा| सहस्त्रबाहू और उसके दस हज़ार पुत्रों से भीषण युद्ध में परशुराम ने ने सहस्त्रबाहू के हज़ार हाँथ काट दिए और उसके अधिकतर पुत्र भी मारे गए|
इसके बाद कामधेनु को आश्रम पहुंचाकर स्वयं तीर्थ पर चले गए| उपयुक्त अवसर देख कर बचे हुए क्षत्रियों ने ऋषि जमद्व्ग्नी का शीश काट दिया और देवी रेणुका को भी प्रताड़ित किया|
देवी रेणुका ने परशुराम को आवाज़ लगाई तो परशुराम विध्युतगति से वह पहुंचे और सारी बात जान कर प्राण किया की वो धरती पर से समस्त क्षत्रियों का विनाश कर देंगे| इसके बाद उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी पर से क्षत्रियों का विनाश किया था|
परशुराम अपने पिता को पुनर्जीवित करने के लिए के लिए कुरुक्षेत्र में यज्ञ किया और फलस्वरूप ऋषि जमद्व्ग्नी पुनर्जीवित हो कर शप्तऋषियों में शामिल हुए|