ऐसा क्या हुआ की राजा जनक ने दूर-दूर तक के राज्यों में अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर का आमंत्रण भेजा परन्तु अयोध्या नरेश महाराजा दशरथ को इस स्वयंवर का न्योता नहीं भेजा गया?
राजा जनक के शासनकाल में एक व्यक्ति का विवाह हुआ। जब वह पहली बार ससुराल जा रहा था तब वहां उसे दल-दल दिखा| उसने देखा की दल-दल में एक गाय फंसी हुई है तथा मरने ही वाली है और उसे बचाया नहीं जा सकता| तब वह गाय के ऊपर पैर रखकर आगे बढ़ गया।
जैसे ही वह आगे बढ़ा, गाय ने तुरन्त दम तोड़ दिया तथा शाप दिया कि जिसके लिए तू जा रहा है, उसे देख नहीं पाएगा, यदि देखेगा तो वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी। वह व्यक्ति घबरा गया और एक उपाय निकाला| ससुराल पहुँचकर वह दरवाजे के बाहर घर की ओर पीठ करके बैठ गया| सबके बुलाने पर भी वह अंदर नहीं आया तथा पीठ कर के ही बैठा रहा|
उसकी पत्नी को जब इस बात का पता चला तो उसने अपने पति से अनुरोध किया| पत्नी के बार बार कहने पर उसने सारी घटना के बारे में बताया| उसकी पत्नी ने उससे कहा कि मैं पतिव्रता स्त्री हूँ, ऐसा कुछ नहीं होगा| उस व्यक्ति ने अपनी पत्नी की ओर देखा तो उसकी आँखों की रोशनी चली गयी| अतः गौहत्या का श्राप सच हो गया|
वे दोनों अपनी समस्या लेकर राजा जनक के पास पहुंचे| राजा जनक के विद्वानों का कहना यह था कि अगर कोई पतिव्रता स्त्री छलनी में गंगाजल लाकर इस व्यक्ति की दोनों आँखों में छींटे लगाए तो इसकी आँखों की रोशनी आ सकती है|
राजा जनक ने पहले अपने राज्य में पतिव्रता स्त्री की खोज की फिर अन्य राज्यों में भी सुचना भेजी कि उनके राज्य में यदि कोई पतिव्रता स्त्री है, तो उसे सम्मान सहित राजा जनक के दरबार में भेजा जाए।
जब यह सूचना अयोध्या नरेश राजा दशरथ को मिली, तो उसने पहले अपनी सभी रानियों से पूछा। प्रत्येक रानी का यही उत्तर था कि राजमहल तो क्या आप राज्य की किसी भी महिला यहाँ तक कि झाडू लगाने वाली, जो कि उस समय अपने कार्यों के कारण सबसे निम्न श्रेणि की मानी जाती थी, से भी पूछेंगे, तो उसे भी पतिव्रता पाएँगे।
उन्होंने राज्य की सबसे निम्न मानी जाने वाली सफाई वाली को बुला भेजा और उसके पतिव्रता होने के बारे में पूछा। उस महिला ने स्वीकृति में गर्दन हिला दी। तब राजा ने यह दिखाने के लिए कि अयोध्या का राज्य सबसे उत्तम है, उस महिला को ही राज-सम्मान के साथ जनकपुर को भेज दिया।
राजा जनक ने उस महिला का सम्मान किया और उसे समस्या बताई। उस महिला ने वह कार्य करने के लिए हाँ कह दी। महिला छलनी लेकर गंगा किनारे गई और प्रार्थना की कि, ‘हे गंगा माता! यदि मैं पूर्ण पतिव्रता हूँ, तो गंगाजल की एक बूँद भी नीचे नहीं गिरनी चाहिए।’ प्रार्थना करके उसने गंगाजल को छलनी में भर लिया और पाया कि जल की एक बूँद भी नीचे नहीं गिरी।
राजा और दरबार में उपस्थित सभी यह दृश्य देख हैरान रह गए तथा उस महिला को ही उस व्यक्ति की आँखों पर छींटे मारने का अनुरोध किया| उस व्यक्ति की आँखों की रोशनी लौट आई| जब उस महिला ने अपने राज्य को वापस जाने की अनुमति माँगी, तो राजा जनक ने अनुमति देते हुए जिज्ञासावश उस महिला से उसकी जाति के बारे में पूछा। महिला द्वारा बताए जाने पर, राजा आश्चर्यचकित रह गए।
अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर के समय उन्होंने सोचा कि जिस राज्य की सफाई करने वाली इतनी पतिव्रता हो सकती है, तो उसका पति कितना शक्तिशाली होगा? अगर राजा दशरथ ने उसी प्रकार के किसी व्यक्ति को भेज दिया तो कहीं राजकुमारी सीता का विवाह किसी निम्न श्रेणी के व्यक्ति के साथ न हो जाए इस विचार से उन्होंने अयोध्या स्वयंवर का आमंत्रण नहीं भेजा|
परन्तु विधाता ने सीता के लिए अयोध्या के राजकुमार राम को चुना था| जाने-अनजाने श्री राम अपने गुरु के साथ जनकपुर पहुंच गए और धनुष तोड़कर सीता के साथ विवाह बंधन में बंध गए|