महाभारत के युद्ध में अनेक सैनिकों एवं योद्धाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी| कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की धरती जहाँ महायुद्ध हुआ था वहां की धरती अभी भी लाल रंग की है| रामायण काल के प्रसंगों से मेल खाते कई तथ्य वैज्ञानिकों को मिले परन्तु महाभारत काल के कुछ खास प्रमाण आज तक नहीं मिल पाए| सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस महायुद्ध के बाद क्या हुआ ?
आज के वक़्त में भले ही दुश्मन के शव के साथ दुर्व्यवहार किया जाता हो परन्तु उस वक़्त ऐसा नहीं होता था| पौराणिक काल में शवों का विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया जाता था| कहा जाता है कि जब भीष्म पितामाह ने अपनी आखिरी साँस ली उस दिन युद्ध भूमि को जला दिया गया था| यह इसलिए किया गया था ताकि मृत योद्धाओं को स्वर्ग में स्थान मिले और उनका शुद्धिकरण हो जाए|
युद्ध के बाद पांडव पुत्र भीम ने आक्रोश में आकर धृतराष्ट्र को बहुत सी कड़वी बातें कहीं| जिनका उत्तर तो वे नहीं दे पाए परन्तु उसी समय वनवास जाने का निश्चय कर लिया| गांधारी ने भी अपने पति के साथ वन जाने का निर्णय लिया| विदुर और संजय भी उनके साथ वन की और चल पड़े|
वन जाने से पहले धृतराष्ट्र ने अपने सभी पुत्रों और योद्धाओं के श्राद्ध के लिए युधिष्ठिर से धन माँगा लेकिन भीम ने उन्हें निराश कर दिया| युधिष्ठिर को यह ठीक नहीं लगा और उसने धृतराष्ट्र को धन दिया और श्राद्ध करवाया| इसके बाद वे चारों वन के लिए निकलने ही लगे थे कि कुंती ने भी साथ जाने की ठान ली| पांडवों के लाख मनाने पर भी वह नहीं रुकी|
धृतराष्ट्र ने तपस्या करने का मन बनाया और दूसरी तरफ विदुर और संजय गांधारी और कुंती की सेवा करने लगे| इसी तरह एक वर्ष बीत गया| फिर पांडव पुत्रों ने सभी से मिलने का मन बनाया उनके साथ द्रौपदी और हस्तिनापुर के कुछ लोग भी गए|
धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती अपने परिवार को देखकर बहुत प्रसन्न हुए लेकिन आश्रम में इतने सारे लोगों को देखकर विदुर वापस लौट गए। युधिष्ठिर उनसे मिलने गए लेकिन रास्ते में ही विदुर के प्राण निकलकर युधिष्ठिर के शरीर में आ गए।
अगले ही दिन ऋषि वेद व्यास आश्रम में आये| उन्हें विदुर की मृत्यु के बारे में जब पता चला तब उन्होंने बताया की विदुर यमराज के अवतार थे और युधिष्ठिर भी उन्हीं के अंश हैं| इसलिए विदुर की आत्मा युधिष्ठिर में समा गयी है| वेद व्यास ने सभी से कहा कि आज वह सभी को अपनी तपस्या का प्रमाण देंगे इसलिए उन्हें जो वर चाहिए वह मांग लें।
सभी ने बहुत सोचा और फिर निर्णय किया कि वे सभी महायुद्ध में मरे गए अपने प्रियजनों को एक बार देखना चाहते हैं| रत होने पर ऋषि व्यास गंगा नदी के अंदर चले गए और थोड़ी ही देर में भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, दुःशासन, अभिमन्यु, धृतराष्ट्र के सभी पुत्र, घटोत्कच, द्रौपदी के पुत्र, पिता और भाई, शकुनि, शिखंडी आदि सभी नदी से बाहर निकल आए।
पहली बार इनमें से किसी के भी मन में अहंकार या किसी भी प्रकार का क्रोध नहीं था। वेदव्यास ने धृतराष्ट्र व गांधारी को भी अपने दिव्य नेत्र प्रदान किए ताकि वह भी अपने परिजनों को देख सकें।