सुदर्शन चक्र से जुड़े कुछ रहस्य

सुदर्शन चक्र भगवन विष्णु का शस्त्र है| यह चक्र एक ऐसा अस्त्र है जो चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वापस आ जाता है| यानि यह चक्र कभी नष्ट नहीं होता|

इस चक्र की उत्पत्ति की कई कहानियां सुनने को मिलती हैं| कुछ लोगों का मानना है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, बृहस्पति ने अपनी ऊर्जा एकत्रित कर के इसकी उत्पत्ति की है| यह भी माना जाता है कि यह चक्र भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना कर के प्राप्त किया है| लोगों का मानना यह भी है कि महाभारत काल में अग्निदेव ने श्री कृष्ण को यह चक्र दिया था जिससे अनेकों का संहार हुआ था|

आइए जानते हैं सुदर्शन चक्र की कुछ रोचक बातें:-

1.  सुदर्शन दो शब्दों से जुड़ क्र बना है, ‘सु’ यानि शुभ और ‘दर्शन’| चक्र शब्द ‘चरुहु’ और ‘करूहु’ शब्दों के मेल से बना है, जिसका अर्थ है गति (हमेशा चलने वाला)|

2.  यह चांदी की शलाकाओं से निर्मित था। इसकी ऊपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष का उपयोग किया गया था।

3.  सुदर्शन चक्र से जुडी एक कहानी यह भी है कि इसका निर्माण विश्वकर्मा के द्वारा किया गया है| विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री संजना का विवाह सूर्य देव के साथ किया परन्तु संजना सूर्य देव की रोशनी तथा गर्मी के कारण उनके समीप ना जा सकी| यह बात जब विश्वकर्मा को पता चली तब उन्होंने सूर्य की चमक को थोड़ा कम कर दिया और सूर्य की बाकि बची ऊर्जा से त्रिशूल, पुष्पक विमान तथा सुदर्शन चक्र का निर्माण किया|

4.  सुदर्शन चक्र शत्रु पर गेरा नहीं जाता यह प्रहार करने वाले की इच्छा शक्ति से भेजा जाता है| यह चक्र किसी भी चीज़ को खत्म करने की क्षमता रखता है|

5.  माना जाता है कि कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को सुदर्शन चक्र की सहायता से उठाया था| श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल सूर्यास्त दिखने कके लिया किया था जिसकी मदद से जयद्रथ का वध अर्जुन द्वारा हो पाया|

6.  इस चक्र ने देवी सती के शरीर के 51 हिस्से कर भारत में जगह-जगह बिखेर दिए और इन जगहों को शक्ति-पीठ के नाम से जाना जाता है| यह तब हुआ जब देवी सती ने अपने पिता के घर हो रहे यग्न में खुद को अग्नि में जला लिया| तब भगवान शिव शोक में आकर सती के प्राणरहित शरीर को उठाए घूमते रहे|

7.  सुदर्शन चक्र की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है जैसे वक़्त, सूर्य और ज़िंदगी कभी रूकती नहीं हैं वैसे ही इसका भी कोई अंत नहीं कर सकता| यह परमसत्य का प्रतीक है|

8.  हमारे शरीर में भी कई तरह के चक्र मौजूद है जिसमें अत्यंत ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न करने की क्षमता है| योग उपनिषद् में सहस्रार चक्र के आलावा 6 चक्र और हैं- मूलधारा, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विसुद्धा और अजना|

9.  श्रीमंदिर के रत्नसिंहासन के 4 देवताओं को चतुर्द्धामूर्थी कहा जाता जिनमें सुदर्शन चक्र को भी देव माना गया है| सुदर्शन चक्र को यहां एक खम्बे के जैसे दर्शाया गया है| इन्हें ऊर्जा और शक्ति का देवता कहा जाता है|

10.  तमिल में सुदर्शन चक्र को चक्रथ अझवार भी कहा जाता है| थाईलैंड की सत्ता का नाम भी इसी चक्र के नाम पर रखा गया है जिसे चक्री डायनेस्टी कहा जाता है|

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *