भगवान शिव और पार्वती के पहले पुत्र गणेश को विघ्नहर्ता और विनायक कहा गया है|अतः गणेश जी हर दुविधा से निकालने वाले हैं| तो फिर ऐसा क्या हुआ कि उन्हें नारद जी की सहायता लेनी पड़ी? आइये जानते हैं:-
एक बार स्वर्गलोक में बहुत उल्लास का वातावरण था| पर्व था भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी के विवाह का| सभी देवतागण तैयारियों में व्यस्त रहने लगे| भगवान विष्णु सभी को न्योता भेजने लगे| सभी देवताओं ने मिलकर माँ लक्ष्मी को प्रभावित करने क लिए सोचा कि बारात बड़ी धूम धाम से कुंदनपुर ले कर जाये|
सभी विष्णु जी के घर एकत्रित होना शुरू हो गए तो सभी ने देखा कि गणेश जी भी विष्णु जी के घर आ रहे हैं| सभी ये देख कर चिंतित हो गए| क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि गणेश जी बारात में शामिल हों| उनका कहना यह था कि गणेश जी बहुत खाना खाते हैं और अजीब लगते हैं| अजीब लगने से तात्पर्य गणेश जी का सिर और उनका मोटा होना था|
इस कारण बारात में गणेश जी के साथ चलने में देवताओं को संकोच था| इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु को कहा कि वे गणेश जी को स्वर्गलोक की देखभाल करने को कहें| हालाँकि भगवान विष्णु को यह बात ठीक नहीं लगी परन्तु सबके ज़ोर देने पर उन्होंने गणेश जी से अनुरोध किया कि वे स्वर्गलोक ही रह जाएँ|
गणेश जी को इस बात का बहुत बुरा लगा पर उन्होंने स्वर्गलोक रुकने की बात को मान लिया| तब नारद जी ने सारी बात गणेश जी के आगे रखी और एक योजना का सुझाव किया| योजना यह थी कि गणेश जी की सवारी यानि मूषक सारे चूहे प्रजाति का मुखिया थे| अगर चूहों की सेना जिस रास्ते से बारात जानी है उसे खोद दें और रास्ता खराब कर दें तो बारात के आगे बढ़ने में बाधा आएगी|
गणेश जी को उनकी योजना पसंद आई और फिर कुछ ऐसा ही हुआ| चूहों ने रास्ता खराब कर दिया था और जब बारात आई तो भगवान विष्णु का रथ का पहिया गढे के कारण धरती के अंदर धसने लगा| घोड़ों का भी संतुलन बिगड़ गया और बारात वहीं रुक गयी| देवताओं की अनेक कोशिशों के बाद भी पहिया बाहर नहीं आ पाया|
एक किसान ने देवताओं को कोशिश करते वक़्त देखा और मदद करने की चाह रखी| देवताओं ने उसे मौका दिया हालाँकि वो जानते थे कि किसान की मदद से कोई हल नहीं निकलेगा| किसान ने जब पहिये को पकड़ा तब जय गणेश का उच्चारण किया और पहिया बाहर निकल गया|
सभी आश्चर्यचकित रह गए और बारातियो में से एक देव ने उस किसान से पूछा की तुमने जय गणेश क्यों कहा| तब किसान ने उत्तर दिया की गणेश जी तो हर दुविधा से निकालने वाले हैं और वह किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले उनका ध्यान ज़रूर करता है|
तब सभी देवतागण शर्मिंदा हो गए और उन्हें ये एहसास हुआ कि किसी भी प्राणी की बाहरी सुंदरता को महत्व न दे कर उनके विचार, आचरण और अच्छाई को महत्व दें| फिर सभी देव वापिस स्वर्गलोग गए और गणेश जी से क्षमा प्राथना की| इस तरह गणेश जी नारद जी की सहायता लेकर भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी के विवाह शामिल हुए|