श्री कृष्ण ने अपनी लीलाओं से सभी का मन मोहा है| कृष्ण की 16008 बीवियाँ थीं जिनमे से 8 को रानी का दर्जा मिला, इन 8 रानियों को अष्टभार्य कहा गया| इन 8 रानियों में से पहली दो रानियों का नाम रुक्मिणी और सत्यभामा था| दोनों रानियां श्री कृष्ण से बहुत प्रेम करती थीं तो ऐसा क्या हुआ कि सत्यभामा ने श्री कृष्ण को दान कर दिया| आइये जानते हैं:-
इस प्रसंग को तुलाभ्राम कहा गया है| हुआ कुछ इस तरह कि सत्यभामा को घमंड था कि कृष्ण उनसे सबसे अधिक प्रेम करते हैं| जब यह बात नारद मुनि को पता चली तो उन्होंने इस घमंड को खत्म करने का निश्चय किया क्योंकि वे जानते थे कि कृष्ण से सबसे अधिक और सच्चा प्रेम रुक्मिणी करती हैं|
नारद मुनि द्वारका पहुंचे और अपनी लीला शुरू की| उन्होंने सत्यभामा को अपनी बातों के जाल में फंसाया और कहा कि तुलाभ्राम व्रत करने से कृष्ण और आपके बिच का प्रेम कई गुणा बढ़ जाएगा| इस व्रत में उन्हें नारद जी को कृष्ण का दान करना होगा और फिर से वापिस पाने के लिए उन्हें कृष्ण के वज़न के बराबर के स्वर्ण नारद जी को दान में देने होंगे| अन्यथा कृष्ण हमेशा के लिए उनके गुलाम बन जाएंगे|
सत्यभामा को उसके पिता के पास रखी हुई स्यमन्तक मणी का ध्यान आया जो सूर्य देव से प्राप्त हुई थी| यह मणी रोज़ एक किलो सोना देती थी| सत्यभामा को नारद मुनि ने संकेत भी दिया कि वह इतना धन नहीं दे पाएंगी पर सत्यभामा ने व्रत के लिए हामी भर दी|
सभी रानियों के निवेदन करने के बावजूद सत्यभामा ने यह व्रत किया और नारद जी को कृष्ण का दान कर दिया| सत्यभामा ने स्वर्णों को एकत्रित करना शुरू किया| फिर एक तुला मंगवाई गयी जिसके एक पलड़े पर कृष्ण बैठे और दूसरे पलड़े पर सत्यभामा की सम्पत्ति रखी गयी| परन्तु वह स्वर्ण थोड़े रह गए, तभी सत्यभामा ने अन्य रानियों से मदद मांगी| सभी ने अपने आभूषण तथा सम्पत्ति दे दी परन्तु सारे स्वर्ण मिलकर भी श्री कृष्ण के भार से कम निकले| कृष्ण वहाँ मौन बैठे रहे जो सत्यभामा के घावों पे नमक की तरह लगा|
तभी नारद जी ने सत्यभामा को सुझाव दिया कि रुक्मिणी शायद कुछ कर सकतीं हैं| सत्यभामा को डर लगने लगा की अगर नारद जी को दान में दिए कृष्ण को वापिस न लाया गया तो सभी रानियों को कृष्ण से बिछड़ने का दुःख सहना पड़ेगा| सत्यभामा ने तब अपने घमंड को हटा कर रुक्मिणी से मदद मांगी|
रुक्मणि ने आकर कृष्ण का ध्यान लगाया और पूजनीय तुलसी का एक पत्ता उन स्वर्णों को हटा कर तुला पर रखा| उस तुलसी के पत्ते से कृष्ण का पलड़ा हल्का हो गया और अंत में सत्यभामा ने कृष्ण, रुक्मणि और नारद जी से माफ़ी मांगी|
इस प्रसंग से हमें ये सीख मिलती है कि भगवान किसी सांसारिक वस्तु से कभी खुश नहीं हो सकते| भगवान को प्रसन्न सिर्फ एक चीज़ कर सकती है वो है सच्चा प्रेम जो रुक्मिणी का कृष्ण के लिए था|