महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 29 किलोमीटर दूर एलोरा का 1200 साल पुराना मंदिर आज भी लोगों की उत्कंठा का केंद्र बना हुवा है. ये आज भी उसी राजसी आन के साथ खड़ा है ये मंदिर उन 34 मंदिरों के समूह में से एक है जो की एलोरा की गुफाओं के नाम से प्रचलित है । यह मंदिर द्रविड़ शिल्पकला का एक जीता जागता उदाहरण है । 8वी शताब्दी में कुशल कारीगरों द्वारा ऐसे सटीक अनुपात और जटिल कारीगरी का नमूना जबकि शिल्पकारी के लिए मात्र हस्त उपकरण और भारी निर्माण सामग्री के परिवहन के लिए मात्र हाथी मौजूद थे उल्लेखनीय है ।
इतिहास
इसका निर्माण राष्ट्रकूट वंश के महाराजा कृष्णा प्रथम के राज्यकाल में हुआ था । राष्ट्रकूट वंश ने भारतीय उपमहाद्वीप पर 6ठी से 10वी शताब्दी तक शासन किया था । यह मंदिर कैलाश मंदिर के नाम से विख्यात है । जैसा की नाम से ही विदित है की ये कैलाश के देवता भगवान् शिव का मंदिर है ।
निर्माण
इस मंदिर का निर्माण संभवतः 757 तथा 783 ईसवी के दौरान हुआ था । इसके निर्माण में ये ध्यान रखा गया है की ये बिल्कुल कैलाश पर्वत जैसा दिखे जो हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान् शिव का निवास स्थान है । इसके निर्माण में अनुमानित 400000 टन पत्थरों को काट कर निकल गया जिसमे 20 साल का समय लगा ।
पत्थरों पर छेनी के निशान को देखते हुए पुरातत्वविदों ने ये अनुमान लगाया है की निर्माणकार्य में तीन तरह की छेनी का इस्तेमाल हुआ था । मंदिर से जुडी एक और अनोखी बात सामने आई की इसका निर्माण ऊपर से निचे की तरफ हुआ था । ऐसा मुख्यद्वार की शिल्पकारी में आने वाली दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए किया गया था । जैसा की आप ऊपर के चित्र में भी देख सकते हैं |
बाहरी वास्तुकला
दो मंजिला द्वार पर आप बहु स्तरीय नक्काशी का उत्तम इस्तेमाल देख सकते हैं । इसका आँगन जो की अंग्रेजी के U अक्षर सा प्रतीत होता बहुत साड़ी तीन मंजिला स्तंभों से घिरा हुआ है जिन पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं । जैसा की प्रायः शिव मंदिर में देखने को मिलता है यहाँ भी नंदी बैल प्रमुख द्वार पर विराजमान हैं । मंदिर के चारों तरफ हाथी बने हुए है । देखने में ऐसा प्रतीत होता है जैसे पुरे मंदिर को हाथियों ने उठा रखा है ।
आंतरिक वास्तुकला
मंदिर की आंतरिक भाग में खंभे, खिड़कियां, भीतरी और बाहरी कमरे, सभा हॉल, और गर्भगृह के भीतर बीचों-बीच एक विशाल शिवलिंग हैं और विभिन्न देवताओं, कामुक पुरुष और महिला की छवि, और कई दूसरों की छवियों के साथ खुदी हुई है ।
प्रवेश द्वार के बाईं ओर पर देवी-देवताओं को भगवान शिव के अनुयायी माना जाता है। जबकि दाएँ हाथ की ओर पर देवी-देवताओं को भगवान विष्णु, जो की हिंदू धर्म में एक और मुख्य देवता हैं उनका अनुयायी माना जाता है | आँगन के भीतरी भाग में दो ध्वजस्तंभ हैं जिन पर अंकित छवियों में भगवान् शिव की विभिन्न लीलाओं को दर्शाया गया है ।
आज से बारह सदी पहले उस दौर में जब विज्ञान इतना विकसित नहीं था तब इतने विशाल मंदिर का निर्माण जो की एक पत्थर को मात्र छेनियों से काट कर किया गया है बड़ा ही सराहनीय है ये उस समय के लोगों की भगवान् में अटूट आस्था और समर्पण भाव को दर्शाता है ।