कैसे शुरू हुई शनि देव पर तेल चढ़ाने की परम्परा

शनि देव की कृपा तथा कहर से कोई अनजान नहीं है। उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है। अगर शनि देव हमसे प्रसन्न हैं तो हमारे जीवन में कोई कष्ट नही आ सकता। इसीलिए शनि देव की कृपा पाने के लिए श्रद्धालु उन्हें शनिवार के दिन तेल चढ़ाते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति ऐसा करते … Read more

Hanuman Ji ne chhati chir ke dikhaya – हनुमान जी ने भरी सभा में अपना सीना डाला चीर 

This is described in the later parts of the Ramayana. After Lord Rama came back from his vanavasa of 14 years and winning over Lanka Naresh Ravana, he was coronated as Ayodhya Naresh – the King of Ayodhya. In the celebration, precious ornaments and gifts were distributed to everyone. Hanuman was also gifted a beautiful … Read more

भगवद गीता (अक्षरब्रह्मयोग- आठवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 28)

अथाष्टमोऽध्यायः- अक्षरब्रह्मयोग ( ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर ) अर्जुन उवाच किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं पुरुषोत्तम । अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥ भावार्थ : अर्जुन ने कहा- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत नाम से क्या कहा गया … Read more

श्री राम का सेतु धाम – Aadhi Haqeeqat Aadha Fasana

Sethu Dham of Shree Ram, some time ago the American science channel claimed that the Shri Ram Setu is real. They say that many stones are found between Rameshwaram and Sri Lanka, which are about 7000 years old. Know the reality of the bridge made by humans in this special program. श्री राम का सेतु … Read more

जय माँ संतोषी फिल्म – 3 Jai Santoshi Mata Movies

भक्तों, आज हम देखेंगे संतोषी माता की हिंदी पिक्चर फिल्म जय संतोषी मां| Jai Santoshi Mata Movie माँ संतोषी, संतोष की माँ के रूप में प्रशंसित है। माँ संतोषी प्रेम, संतोष , क्षमा, खुशी और आशा की प्रतिक है जो उनके शुक्रवार की व्रत कथा में कहा गया है। यह बहुत माना जाता है की … Read more

Somvati Amavasya Ki Katha – सोमवती अमावस्या की कथा

सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। ये वर्ष में लगभग एक अथवा दो ही बार पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व होता है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान … Read more

शिव चालीसा – Shiv Chalisa

शिवजी की आराधना के लिए सबसे आसान मंत्र है “ऊं नम: शिवाय”। इस मंत्र के साथ शिवजी की पूजा में शिव चालीसा का भी उपयोग किया जाता है। शिव चालीसा हिन्दू धार्मिक पुस्तकों में भी वर्णित है। ।।दोहा।। श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥ जय गिरिजा पति दीन … Read more

सूर्यदेव अमृतवाणी – Suryadev Amritvaani – Special Bhajans for Sunday

रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित है. वैसे तो रोज़ सूर्यदेव की आराधना करनी चाहिए, परन्तु रविवार का इसका अलग महत्व होता है. प्रातःकाल उठकर स्नान करने के पश्तात सूर्य को जल ज़रूर दें. आईये सुनते हैं सूर्यदेव अमृतवाणी अवं कुछ और भजन.

आखिर क्या था श्री राम के वनवास जाने के पीछे का रहष्य

रामायण में श्री राम, लक्ष्मण एवं सीता को चौदह वर्षों का वनवास भोगना पड़ा था और इसका कारण राम की सौतेली माता कैकयी को माना जाता है| लेकिन आखिर ऐसा क्या कारण था की महाराजा दशरथ को देवी कैकई की अनुचित मांग माननी पड़ी थी| आइये जानते है उस कथा के बारे में जिसकी वजह … Read more

सोमवार व्रत विधि – कैसे रखते हैं सोमवार का व्रत

सोमवार व्रत भगवान शिव को समर्पित है। त्रिदेवों में एक माने जाने वाले भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिन्दू धर्म में सोमवार व्रत का विधान है। माना जाता है कि सोमवार का व्रत पूरे विधि- विधान के साथ करने से मन की सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार … Read more

श्री हनुमान चालीसा और उसका सम्पूर्ण अर्थ – Hanuman Chalisa

जय हनुमान जी की. भक्तों, आपको श्री हनुमान चालीसा के बारे में तो पता ही होगा। हो सकता है आप इसका जाप भी करते हों. परन्तु, क्या आपको चालीसा की सभी दोहों का अर्थ मालूम है? अगर नहीं तो आप नीचे लिखे हुए दोहे और उनके अर्थ के बारे में जान सकते हैं.

Hanuman Chalisa ka matlab – What is the meaning of Hanuman Chalisa?

दोहा 1 : श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि |
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ||

अर्थ: “शरीर गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।”

दोहा 2 : बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ||

अर्थ: “हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।”

दोहा 3 : जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥

अर्थ: “श्री हनुमान जी!आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।”

दोहा 4 : राम दूत अतुलित बलधामा,
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥

अर्थ: “हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है।”

दोहा 5 : महावीर विक्रम बजरंगी,
कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥

अर्थ: “हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।”

दोहा 6 : कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥

अर्थ: “आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।”

दोहा 7 : हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे,
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥

अर्थ: “आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।”

दोहा 8 : शंकर सुवन केसरी नंदन,
तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥

अर्थ: “हे शंकर के अवतार!हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है।”

दोहा 9 : विद्यावान गुणी अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर॥7॥

अर्थ: “आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।”

दोहा 10 : प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया॥8॥

अर्थ: “आप श्री राम चरित सुनने में आनन्द रस लेते है।श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय में बसे रहते है।”

दोहा 11 : सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा,
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥9॥

अर्थ: “आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।”

दोहा 12 : भीम रूप धरि असुर संहारे,
रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥

अर्थ: “आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उद्देश्यों को सफल कराया।”

दोहा 13 : लाय सजीवन लखन जियाये,
श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥

अर्थ: “आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।”

दोहा 14 : रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई,
तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥

अर्थ: “श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।”

दोहा 15 : सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,
अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥

अर्थ: “श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।”

दोहा 16 : सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा,
नारद, सारद सहित अहीसा॥14॥

अर्थ: “श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।”

दोहा 17 : जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥

अर्थ: “यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।”

दोहा 18 : तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा,
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥

अर्थ: “आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया , जिसके कारण वे राजा बने।”

दोहा 19 : तुम्हरो मंत्र विभीषण माना,
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥17॥

अर्थ: “आपके उपदेश का विभीषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।”

दोहा 20 : जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥

अर्थ: “जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।”

दोहा 21 : प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥

अर्थ: “आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।”

दोहा 22 : दुर्गम काज जगत के जेते,
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥

अर्थ: “संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।”

दोहा 23 : राम दुआरे तुम रखवारे,
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥21॥

अर्थ: “श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।”

दोहा 24 : सब सुख लहै तुम्हारी सरना,
तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥

अर्थ: “जो भी आपकी शरण में आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।”

दोहा 25 : आपन तेज सम्हारो आपै,
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥

अर्थ: “आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।”

दोहा 26 : भूत पिशाच निकट नहिं आवै,
महावीर जब नाम सुनावै॥24॥

अर्थ: “जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते।”

दोहा 27 : नासै रोग हरै सब पीरा,
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥

अर्थ: “वीर हनुमान जी!आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है, और सब पीड़ा मिट जाती है।”

दोहा 28 : संकट तें हनुमान छुड़ावै,
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥

अर्थ: “हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते है।”

दोहा 29 : सब पर राम तपस्वी राजा,
तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥

अर्थ: “तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।”

दोहा 30 : और मनोरथ जो कोइ लावै,
सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥

अर्थ: “जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।”

दोहा 31 : चारों जुग परताप तुम्हारा,
है परसिद्ध जगत उजियारा॥ 29॥

अर्थ: “चारों युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।”

दोहा 32 : साधु सन्त के तुम रखवारे,
असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥

अर्थ: “हे श्री राम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।”

दोहा 33 : अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता,
अस बर दीन जानकी माता॥31॥

अर्थ: “आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।”

दोहा 34 : राम रसायन तुम्हरे पासा,
सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥

अर्थ: “आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।”

दोहा 35 : तुम्हरे भजन राम को पावै,
जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥

अर्थ: “आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।”

दोहा 36 : अन्त काल रघुबर पुर जाई,
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥ 34॥

अर्थ: “अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।”

दोहा 37 : और देवता चित न धरई,
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥

अर्थ: “हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।”

दोहा 38 : संकट कटै मिटै सब पीरा,
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥

अर्थ: “हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।”

दोहा 39 : जय जय जय हनुमान गोसाईं,
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥

अर्थ: “हे स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो, जय हो, जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।”

दोहा 40 : जो सत बार पाठ कर कोई,
छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥

अर्थ: “जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।”

दोहा 41 : जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ 39॥

अर्थ: “भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।”

दोहा 42 : तुलसीदास सदा हरि चेरा,
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥

अर्थ: “हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।”

दोहा 43 : पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभुप॥

अर्थ: “हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरूप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।”

श्री राम की सहयता करने वाले जामवंत ने महाभारत में किया था श्री कृष्ण से युद्ध

रामायण में जिन्होंने श्री राम की लंका युद्ध में सहायता की थी| उनमें से एक जामवंत भी थे| जामवंत रामायण के उन पात्रों में से एक हैं जिनकी उपस्थिति महाभारत काल में भी पायी गयी है| रामायण काल में जहां जामवंत ने विष्णु जी के अवतार श्री राम की रावण के वध के लिए सहायता की … Read more